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कठिन शब्दार्थ - वग्गा वर्ग-अध्ययनों के समूह को वर्ग कहते हैं, अज्झयणा
अध्ययन, पण्णत्ता कहे गये हैं।
प्रथम वर्ग - आर्य सुधर्मा स्वामी का समाधान
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जम्बू !
भावार्थ - सुधर्मा स्वामी ने जम्बू अनगार के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा श्रमण भगवान् यावत् मोक्ष प्राप्त महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिकदशा नामक नौवें अंग के तीन वर्ग कहे हैं।
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हे भगवन्! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने नौवें अंग अनुत्तरोपपातिक दशा के तीन वर्ग कहे हैं तो हे भगवन्! अनुत्तरोपपातिक दशा के पहले वर्ग के कितने अध्ययन कहे हैं?
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हे जंबू ! श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिक दशा के प्रथम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं उनके नाम इस प्रकार हैं - १. जालिकुमार २. मयालिकुमार ३. उपजालिकुमार ४. पुरुषसेन कुमार ५. वारिसेनकुमार ६. दीर्घदंत कुमार ७. लष्टदंतकुमार वेहल्लकुमार ६. वेहासकुमार और १०. अभयकुमार ।
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विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में इस ग्रंथ का विषय संक्षेप में बताया गया है। जम्बूस्वामी ने अत्यंत उत्कट जिज्ञासा से सुधर्मा स्वामी से पूछा कि हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने अनुत्तरोपपातिकदशा के कितने वर्ग कहे हैं? इस पर सुधर्मा स्वामी ने फरमाया कि उक्त सूत्र के तीन वर्ग कहे गये हैं। फिर जम्बूस्वामी ने प्रश्न किया कि इन तीन वर्गों के प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन प्रतिपादन किये गये हैं। उत्तर में सुधर्मा अनगार ने बताया कि प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कहे गये हैं । जालिकुमार आदि प्रथम वर्ग के दश अध्ययनों के नाम हैं जो भावार्थ में दिये गये हैं।
८.
इस सूत्र से यह सिद्ध होता है कि गुरु भक्ति से ही श्रुत ज्ञान की अच्छी तरह से प्राप्ति हो सकती है।
अब जम्बू अनगार सुधर्मा स्वामी से फिर प्रश्न करते हैं
जड़ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ?
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'भावार्थ - हे भगवन्! यदि मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम वर्ग के . दश अध्ययन कहे हैं तो हे भगवन्! अनुत्तरोपपातिकदशा के प्रथम अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ प्रतिपादन किया है?
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