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अनुत्तरोपपातिक दशा सूत्र
नगर का विशेष वर्णन औपपातिक सूत्र से जानना चाहिये। उस राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के पांचवें गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी पधारे। ___ आर्य सुधर्मा स्वामी का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - 'कोल्लाक' नामक सन्निवेश में 'धम्मिल' नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। उनकी स्त्री का नाम 'भदिल्ला' था। उनके 'सुधर्मा' नाम के पुत्र थे। उन्होंने ५० वर्ष की उम्र में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास दीक्षा अंगीकार की। ३० वर्ष पर्यंत भगवान् महावीर स्वामी की सेवा की। वे चौदह पूर्वधारी हुए। वीर निर्वाण के १२ वर्ष पश्चात् जन्म से ६२ वर्ष की उम्र में उनको केवलज्ञान हुआ। आठ वर्ष तक केवली पर्याय का पालन कर पूरे १०० वर्ष की आयु में आर्य जम्बूस्वामी को अपने पद पर स्थापित कर आप मोक्ष पधारे। सुधर्मा स्वामी के गुणों का विस्तृत वर्णन ज्ञातासूत्र से जानना चाहिये।
ऐसे सुधर्मा स्वामी का राजगृह में पधारना जान कर नगर निवासी वंदन तथा धर्म श्रवण करने के लिये निकले। धर्मकथा सुन कर अपने-अपने स्थान पर गये। तदनन्तर सुधर्मा स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य आर्य जंबूस्वामी ने नतमस्तक हो दोनों हाथ जोड़कर आर्य सुधर्मा स्वामी से निवेदन किया - "हे भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी जो मोक्ष को प्राप्त हो गये हैं उन्होंने आठवें अंग अंतकृतदशा सूत्र का अमुक अर्थ प्रतिपादन किया है जो मैंने आपके मुखारविंद से सुन लिया है। अब मेरी जिज्ञासा नौवें अंग के अर्थ को जानने की है। कृपा कर वह भी वर्णन फरमाइये।" । - जम्बूस्वामी के उक्त जिज्ञासा रूप प्रश्न को सुन कर सुधर्मा स्वामी इस प्रकार कहने लगे
आर्य सुधर्मा स्वामी का समाधान तए णं से सुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं वंयासी - एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं णवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तिण्णि वग्गा पण्णत्ता। जड़ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं णवमस्स अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं तओ वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! वग्गस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं कइ अज्झयणा पण्णत्ता? एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अणुत्तरोववाइयदसाणं पढमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तंजहा -
जालि-मयालि-उवयालि-पुरिससेणे य वारिसेणे य। दीहदंते य लट्ठदंते य वेहल्ले वेहासे अभए इ य कुमारे॥
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