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________________ पठमो वग्गो - प्रथम वर्ग जंबू स्वामी की जिज्ञासा (१) तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे अज्जसुहम्मस्स समोसरणं, परिसा णिग्गया, जाव जंबू पजुवासइ एवं वयासी-जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अयमढे पण्णत्ते, णवमस्स णं भंते! अंगस्स अणुत्तरोववाइयदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पण्णत्ते? कठिन शब्दार्थ - तेणं कालेणं - उस काल में, तेणं समएणं - उस समय में, समोसरणं - समवसरण, परिसा - परिषद्, णिग्गया - निकली, पजुवासइ - पर्युपासनासेवा करते हुए, अढे - अर्थ। - भावार्थ - उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर में आर्य सुधर्मा स्वामी पधारे। उन्हें वंदना करने के लिये परिषद् निकली और धर्मोपदेश सुन कर अपने अपने स्थान पर गई यावत् जम्बू स्वामी सुधर्मा स्वामी की पर्युपासना (सेवा) करते हुए इस प्रकार बोले - - हे भगवन्! यदि मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आठवें अङ्ग अंतगडदशा का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो हे भगवन्! नौवें अङ्ग अनुत्तरोपपातिकदशा का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है? विवेचन - सूत्रों की संख्या-बद्ध क्रम में आठवां अंग अन्तकृद्दशा और नौवां अंग अनुत्तरोपपातिक-दशा है। अतः अंतगड दशा सूत्र के अनन्तर ही इसका आना सिद्ध है। आठवें अंगसूत्र में उन जीवों का वर्णन है जो उसी भव में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पधारे हैं किंतु इस नौवें अंग में उन महापुरुषों के जीवन का दिग्दर्शन कराया गया है जो इस मनुष्य भव का आयुष्य पूर्ण कर पांच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए हैं। .. तेणं कालेणं - उस काल अर्थात् चौथे आरे के तेणं समएणं - उस समय, जब श्री भगवान् महावीर स्वामी निर्वाण पद प्राप्त कर चुके थे, राजगृह नामक एक नगर था। राजगृह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004192
Book TitleAnuttaropapatikdasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages86
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuttaropapatikdasha
File Size12 MB
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