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________________ ७७ वर्ग ३ अध्ययन ३ शुक्र महाग्रह विषयक पृच्छा ....................................................... काल कर संयम विराधना के कारण सूर्यावतंसक विमान की उपपात सभा की देवदूष्य से आच्छादित देव शय्या में ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज सूर्य के रूप में उत्पन्न हुआ। सूर्य देव की आयु, भव, स्थिति क्षय होने पर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और वहाँ से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा। - सुधर्मा स्वामी, जम्बूस्वामी से फरमाते है कि हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का यह भाव निरूपण किया है। जैसा मैंने भगवान् से सुना है वैसा ही तुम्हें कहता हूँ। ॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥ तइयं अज्झयणं तृतीय अध्ययन शुक्र महाग्रह विषयक पृच्छा जइ णं भंते! जाव संपत्तेणं उक्खेवओ भाणियव्वो। रायगिहे णयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। सामी समोसढे। परिसा णिग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सुक्के महग्गहे सुक्कवडिंसए विमाणे सुक्कंसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जहेव चंदो तहेव आगओ, णट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगओ। भंते! ति। कूडागारसाला। पुव्वभवपुच्छा, एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी णामं णयरी होत्या। तत्थ णं वाणारसीए णयरीए सोमिले णामं माहणे परिवसइ, अले जाव अपरिभूए, रिउव्वेय जाव सुपरिणिट्ठिए। पासे समोसढे। परिसा पञ्जवासइ॥४॥ . भावार्थ - जम्बू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से पूछा- “हे भगवन्! यदि मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के द्वितीय अध्ययन का भाव पूर्वोक्तानुसार फरमाया है तो हे भगवन् भगवान् महावीर स्वामी ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन का क्या भाव फरमाया है?" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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