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________________ कप्पवडिंसियाओ-कल्पावतंसिका बीओ वग्गो - पढमं अज्झयणं द्वितीय वर्ग-प्रथम अध्ययन जइ णं भंते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवंगाणं पढमस्स वग्गस्स णिरयावलियाणं अयमढे पण्णत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स कप्पवडिंसियाणं समणेणं जाव संपत्तेणं कइ अज्झयणा पण्णता? __ एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पण्णता, तंजहा-पउमे १, महापउमे २, भद्दे ३, सुभद्दे ४, पउमभद्दे ५, पउमसेणं ६, पउमगुम्मे ७, णलिणिगुम्मे ८, आणंदे ६, गंदणे १०॥७७॥ भावार्थ - जम्बू स्वामी ने पूछा - हे भगवन्! यदि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उपांग के निरयावलिका नामक प्रथम वर्ग का यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो हे भगवन्! दूसरे वर्ग कल्पावतंसिका का मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या अर्थ फरमाया है? सुधर्मा स्वामी ने फरमाया - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कल्पावतंसिका के दस अध्ययन कहे हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं - १. पद्म २. महापद्म ३. भद्र ४. सुभद्र ५. पद्मभद्र ६. पद्मसेन ७. पद्मगुल्म ८. नलिनीगुल्म ह. आनन्द और १०. नन्दन। विवेचन - आर्य सुधर्मा स्वामी से प्रथम वर्ग निरयावलिका सूत्र का भाव श्रवण कर जम्बूस्वामी को उपांग के द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का वर्णन जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। अपनी जिज्ञासा . पूर्ति के लिये विनयभाव पूर्वक सुधर्मा स्वामी से प्रश्न किया - "हे भगवन्! प्रथम वर्ग निरयावलिका का अर्थ मैंने सुना अब द्वितीय वर्ग कल्पावतंसिका का मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने क्या भाव फरमाया है?" भगवान् सुधर्मा स्वामी ने फरमाया - "हे जम्बू! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने कल्पावतंसिका के दस अध्ययन फरमाये हैं - पद्म यावत् नन्दन।" जइ णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं कप्पवडिंसियाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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