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________________ वर्ग १ अध्ययन ३-१० ........................................................... विवेचन - अपने गुरु सुधर्मा स्वामी के मुखारविन्द से निरयावलिका सूत्र के प्रथम अध्ययन का भाव सुनने के बाद जम्बूस्वामी को द्वितीय अध्ययन का भाव जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। जम्बू स्वामी की जिज्ञासा को शांत करते हुए सुधर्मा स्वामी ने निरयावलिका का यह द्वितीय अध्ययन फरमाया है। द्वितीय अध्ययन का वर्णन भी प्रथम अध्ययन के समान है। कालकुमार के स्थान पर सुकालकुमार और काली देवी के स्थान पर सुकाली देवी है। सुकाल कुमार भी अपने अशुभ कर्मों के कारण चौथी नरक में उत्पन्न हुआ, जहाँ से निकल कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर और संपूर्ण कर्मों का क्षय कर मोक्ष प्राप्त करेगा। ॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त॥ तृतीय से दशम अध्ययन एवं सेसावि अट्ठ अज्झयणा णेयव्वा पढमसरिसा, णवरं मायाओ सरिसणामाओ! णिक्खेवो सव्वेसिं भाणियव्वो तहा॥७६॥ १॥ १०॥ णिरयावलियाओ समत्ताओ॥ पढमो वग्गो समत्तो॥१॥ भावार्थ - इसी प्रकार प्रथम अध्ययन के समान ही शेष आठ अध्ययन भी समझ लेने चाहिए किन्तु इतनी विशेषता है कि उनकी माताओं के नाम के समान कुमारों के नाम हैं। सभी का निक्षेपउपसंहार प्रथम अध्ययन के समान समझना चाहिये। . विवेचन - काल, सुकाल कुमार के अध्ययन के समान ही शेष आठ कुमारों - ३. महाकाल ४. कृष्ण ५. सुकष्ण ६. महाकृष्ण ७. वीर कृष्ण ८. रामकृष्ण ६. पितृसेन कृष्ण और १०. महासेन-के गाठ अध्ययन समझने चाहिये। इस प्रकार दसों कुमार रथमूसल संग्राम में काल करके नरक में उत्पन्न हुए और दसों ही महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर मोक्ष में जाएंगे। __णवरं मायाओ सरिणामाओं' - अर्थात् विशेषता यह है कि माताओं के नाम के समान उन कुमारों के नाम हैं। जैसे - महाकाली रानी का पुत्र महाकाल, कृष्णादेवी का पुत्र कृष्ण, सुकृष्णादेवी का पुत्र सुकृष्ण आदि। . इस प्रकार निरयावलिका नामक प्रथम वर्ग का वर्णन समाप्त हुआ। ॥ तृतीय अध्ययन से दशम अध्ययन समाप्त॥ | निरयावलिका समाप्त। । प्रथम वर्ग समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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