SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग १ अध्ययन १ चेटक राजा का युद्ध के लिए प्रयाण वेहल्लकुमार को भेज दिया जाय । अतः जब कोणिक राजा चतुरंगिणी सेना के साथ युद्ध सज्जित होकर यहाँ आ रहा है तब हम कोणिक राजा के साथ युद्ध करें। तए णं से चेडए राया ते णव मल्लई णव लेच्छई कासीकोसलगा अट्ठारसवि गणरायाणो एवं वयासी - जइ णं देवाणुप्पिया! तुब्भे कूणिए रण्णा सद्धिं जुज्झह तं गच्छह णं देवाणुप्पिया! ससु ससु रजेसु ण्हाया जहा कालाईया जाव जएणं विजएणं वद्धावेंति । ५३ तए णं से चेडए राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासीआभिसेक्कं जहा कूणिए जाव दुरूढे ॥ ६७ ॥ भावार्थ - तत्पश्चात् चेटक राजा उन नौ मल्लवी नौ लिच्छवी काशी कोशल देश के अठारह गणराजाओं से इस प्रकार बोले- 'हे देवानुप्रियो ! यदि आप कोणिक राजा से युद्ध करने के लिए तैयार हैं तो अपने अपने राज्यों में जाइए और स्नान आदि कर काल आदि कुमारों के समान युद्ध के लिए • सुसज्जित होकर अपनी-अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ यहाँ आइए ।' यह सुन कर वे राजा अपनेअपने राज्यों में गए और युद्ध के लिए सुसज्जित हो कर आए, आकर उन्होंने चेटक राजा को जयविजय शब्दों से बधाया । तदनन्तर चेटक राजा कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाते हैं और बुला कर इस प्रकार क आभिषेक्य हस्तिरत्न को सजाओ यावत् कोणिक राजा की तरह चेटक राजा भी हस्तिरत्न पर आरूढ़ हुआ।' Jain Education International चेटक राजा का युद्ध के लिए प्रयाण तणं चेड या तिहिं दंतिसहस्सेहिं जहा कूणिए जाव वेसालिं णयरिं मज्झं मझेणं णिग्गच्छs णिग्गच्छित्ता जेणेव ते णव मल्लई णव लेच्छई कासीको लगा अट्ठारसवि गणरायाणो तेणेव उवागच्छइ । तए णं से चेडए राया सत्तावण्णाए दंतिसहस्सेहिं सत्तावण्णाए आससहस्सेहिं सत्तावण्णाए रहसहस्सेहिं सत्तावण्णाए मणुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्डीए जाव वेणं सुभेहिं वसहीहिं पायरासेहिं णाइविगिट्ठेहिं अंतरेहिं वसमाणे वसमाणे विदेहं जणवयं मज्झं मज्झेणं जेणेव देसपंते For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy