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निरयावलिका सूत्र
तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता खंधावारणिवेसणं करेइ करित्ता कूणियं रायं पडिवालेमाणे जुझसने चिट्ठइ॥६८॥
कठिन शब्दार्थ - खंधावार णिवेसणं - स्कन्धावार निवेश(पड़ाव डालना), पडिवालेमाणे - प्रतीक्षा करते हुए, देसपंते - देश का प्रांत सीमा भाग।
भावार्थ - तत्पश्चात् चेटक राजा तीन हजार हाथियों आदि के साथ कोणिक राजा की तरह यावत् वैशाली नगरी के मध्य में से होकर निकला, निकल कर जहाँ नौ मल्लवी नौ लिच्छवी काशी कोशल के अठारह गणराजा थे, वहाँ आया। इसके बाद चेटक राजा सत्तावन हजार हाथियों, सत्तावन हजार घोड़ों, सत्तावन हजार रथों और सत्तावन करोड़ मनुष्यों-पैदल सैनिकों को साथ लेकर सर्व ऋद्धि यावत् वाद्य घोष पूर्वक शुभ (सुखद) स्थानों में प्रातःकालीन कलेवा (भोजन) करते हुए थोड़ी थोड़ी दूरी पर विश्राम करते हुए विदेह जनपद के मध्य में से होते हुए जहाँ सीमान्त प्रदेश था, वहाँ आया आकर स्कन्धावार निवेश किया तथा कोणिक राजा की प्रतीक्षा करते हुए युद्ध के लिए तत्पर होकर ठहर गया।
तए णं से कणिए राया सव्विड्डीए जाव रवेणं जेणेव देसपंते तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चेडयस्स रण्णो जोयणंतरियं खंधावारणिवेसं करेइ॥६६॥
__ भावार्थ - तदनन्तर कूणिक राजा सर्वऋद्धि यावत् वाद्यघोष पूर्वकं जहाँ सीमान्त प्रदेश था, वहाँ आया। आकर चेटक राजा से एक योजन की दूरी पर उसने भी स्कन्धावार निवेश किया-पड़ाव डाल दिया।
भयंकर युद्ध तए णं ते दोण्णिवि रायाणो रणभूमिं सजावेंति सज्जावित्ता रणभूमिं जयंति। तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दंतिसहस्सेहिं जाव मणुस्सकोडीहिं गरुलवूहं रएड़ रइत्ता गरुलवूहेणं रहमुसलं संगामं उवायाए। तए णं से चेडगे राया सत्तावण्णाए दंतिसहस्सेहिं जाव सत्तावण्णाए मणुस्सकोडीहिं सगडवूहं रएइ रइत्ता सगडवूहेणं रहमुसलं संगाम उवायाए।
तए णं ते दोण्हवि राईणं अणीया संणद्ध० जाव गहियाउहपहरणा मंगइएहिं फलएहिं णिक्कट्ठाहिं असीहिं अंसागएहिं तोणेहिं सजीवेहिं धणूहिं समुक्खित्तेहिं
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