________________
वर्ग १ अध्ययन १ श्रेणिक द्वारा कारण-पृच्छा
२१
देविं सुक्कं भुक्खं जाव झियायमाणि पासइ पासित्ता एवं वयासी-किं णं तुमं देवाणुप्पिए! सुक्का भुक्खा जाव झियासि?॥१८॥ ___ भावार्थ - तत्पश्चात् वह श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं से यह अर्थ सुन कर, मन में धारण करके, उसी प्रकार व्याकुल होता हुआ जहाँ चेलना देवी थी वहाँ आता है, आकर चेलना देवी को शुष्क, भूख से व्याप्त यावत् आर्तध्यान से युक्त चिंता करती देखता है, देख कर इस प्रकार कहता है - "हे देवानुप्रिये! तुम शुष्क, भूख से व्याप्त शरीर वाली यावत् आर्तध्यान से युक्त होकर क्यों चिंता कर रही हो?"
तए णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रण्णो एयमढें णो आढाइ णो परिजाणाइ, तुसिणीया संचिट्ठइ। तए णं से सेणिए राया चेल्लणं देविं दोच्चंपि तचंपि एवं वयासी-किं णं अहं देवाणुप्पिए! एयमट्ठस्स णो अरिहे सवणयाए जंणं तुमं एयमटुं रहस्सीकरेसि?॥१६॥
- भावार्थ - चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस अर्थ का आदर नहीं किया, जाना भी नहीं किन्तु मौनस्थ हो रहने लगी। __ तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने चेलना देवी को दूसरी और तीसरी बार इस प्रकार कहा"हे देवानुप्रिये! क्या मैं तुम्हारे मन की बात सुनने के लिए अयोग्य हूँ? जिससे तुम इस रहस्य को छिपाती हो?" . तएणं सा चेल्लणा देवी सेणिएणं रण्णा दोचंपि तच्चंपि एवं वुत्ता समाणी सेणियं रायं एवं वयासी-णत्थि णं सामी! से केइ अढे जस्स णं तुन्भे अणरिहा सवणयाए, णो चेव णं इमस्स अट्ठस्स सवणयाए, एवं खलु सामी! ममं तस्स ओरालस्स जाव महासुमिणस्स तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए - धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाओ णं तुम्भं उयरवलिमसेहिं सोल्लएहि य जाव दोहलं विणेंति, तए णं अहं सामी! तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि सुक्का भुक्खा जाव झियामि॥२०॥
भावार्थ - तत्पश्चात् चेलना देवी श्रेणिक राजा के द्वारा दूसरी बार और तीसरी बार इस 'प्रकार कहे जाने पर श्रेणिक राजा से इस प्रकार बोली-"स्वामिन्! ऐसी तो कोई बात नहीं है, जो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org