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________________ २० निरयावलिका सूत्र ................................ ........................ जैसी हो गई, मुख फीका पड़ गया, उसके नेत्र नीचे झुक गये और मुख कमल मुझ गया। यशोचित पुष्प, वस्त्र, गंध माला-फूलों की गूंथी हुई माला और अलंकारों का उपभोग नहीं करती हुई हथेलियों से मसली हुई कमल की माला की तरह आहत मनोरथा, कर्त्तव्य और अकर्तव्य के विवेक से रहित यावत् आर्तध्यान में डूब गई। विवेचन - जीव जिन शुभ अशुभ कर्मों को लेकर माता के गर्भ में आता है उसकी प्रतीति माता को दिखाई देने वाले स्वप्नों से तथा माता को उत्पन्न होने वाले दोहदों से भली भांति हो जाती है। शुभ दोहद जीव के सौभाग्य का और अशुभ दोहद जीव के दुर्भाग्य का परिचायक होता है। .. ___महारानी चेलना को गर्भस्थ बालक के प्रभाव से यह इच्छा हुई कि "मैं अपने पति के कलेजे के मांस को तल कर, भून कर, पका कर मदिरा के साथ खाऊँ और अपने जीवन को धन्य बनाऊँ।" . चेलना महारानी इस प्रकार के कुत्सित घृणित दोहद के पूर्ण न होने के कारण खिन्नचित्त रहने । लगी। आर्तध्यान करने लगी। तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अंगपडियारियाओ चेल्लणं देविं सुक्कं भुक्खं जाव झियायमाणिं पासंति पासित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट सेणियं रायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! चेल्लणा देवी ण याणामो केणइ कारमेणं सुक्का भुक्खा जाव झियाइ॥ १७॥ कठिन शब्दार्थ - अंगपडियारियाओ - अंगपरिचारिकाओं (आभ्यंतर दासियों)। भावार्थ - उसके बाद उस चेलना देवी की अंगपरिचारिकाओं ने चेलना देवी को शुष्क, भूख से ग्रस्त-सी यावत् चिन्तित देखा। देख कर जहाँ श्रेणिक राजा था वहाँ आती है। दोनों हाथों को जोड़ कर आवर्त पूर्वक मस्तक पर अंजलि करके श्रेणिक राजा से इस प्रकार निवेदन किया-"स्वामिन्! चेलना देवी न मालूम किस कारण से शुष्क, भूख से व्याप्त होकर यावत् आर्तध्यान से युक्त होकर चिंतित रहती है।" श्रेणिक द्वारा कारण-पृच्छा तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म तहेव संभंते समाणे जेणेव चेल्लणा देवी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चेल्लणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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