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________________ वर्ग १ अध्ययन १ चेलना का दोहद १६ चेलना का दोहद तए णं तीसे चेल्लणाए देवीए अण्णया कयाई तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव जस्मजीवियफले जाओ णं सेणियस्स रण्णो उयरवलीमसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च जाव पसण्णं च आसाएमाणीओ जाव परिभाएमाणीओ दोहलं पविणेति। ___तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि सुक्का भुक्खा णिम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा णित्तेया दीणविमणवयणा पण्डुइयमुही ओमंथियणयण-वयणकमला जहोचियं पुप्फवत्थगंधमल्लालंकारं अपरि जमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ॥१६॥ कठिन शब्दार्थ - दोहले - दोहद-गर्भवती माता का विशेष मनोरथ, उयरवलीमंसेहिं सोल्लेहि- उदरावली के शूल पर सेके हुए, तलिएहि - तले हुए, भज्जिएहि - भूने हुए, आसाएमाणीओ - आस्वादन करती हुई, परिभाएमाणीओ - आपस में बांटती हुई, पविणेंति - पूर्ण करती है, अविणिजमाणंसि - पूर्ण नहीं होने से, सुक्का - शुष्का-रुधिर आदि के क्षय होने से जिसका शरीर सूख गया, भुक्खा - बुभुक्षा-भोजन न करने से बल हीन होकर बुभुक्षिता-सी, भूख से पीड़ित, णिम्मंसा - निर्मांस-मांस-रहित, ओलुग्गा - अवरुण्णा-जीर्ण, णित्तेया - निस्तेज, दीणविमणवयणा - दीन-विमनोवदना, पण्डुइयमुही - पाण्डुरमुखी-विवर्णमुखी, ओमंथिय-णयणवयणकमला - अवमथित नयन वदन कमला-नेत्र और मुख कमल झुके हुए, करयलमलियव्य - हथेलियों से मसली हुई, ओहयमणसंकप्पा- आहत मनोरथा-कर्तव्य अकर्तव्य के विवेक से रहित। भावार्थ - तत्पश्चात् उस चेलना देवी को किसी समय तीन मास पूरे होने पर इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ कि - "वे माताएं धन्य हैं, उनका जन्म जीवन सफल है जो श्रेणिक राजा (अपने पति के) के कलेजे के मांस को शूल पर चढा कर, तेल में तल कर, अग्नि में सेक कर मदिरा के साथ प्रसन्न होती हुई आस्वादन करती हुई यावत् आपस में बांटती हुई अपने दोहद को पूर्ण करती है।" तब वह चेलना देवी उस दोहद के पूर्ण न होने के कारण शुष्क सूखी-सी हो गई, भूख से पीड़ित-सी हो गई, मांस रहित हो गई, जीर्ण और जीर्ण शरीर वाली हो गई, निस्तेज दीन विमनस्क Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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