________________
१२०
पुष्पिका सूत्र .......................................................... धम्मे इच्छिए जाव अभिरुइए, तए णं अहं देवाणुप्पिया! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाया सुव्वयाणं अज्जाणं जाव पव्वइत्तए॥ १३६॥
भावार्य - तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के पास आवेगी और अपने दोनों हाथों को जोड़कर विनयपूर्वक इस प्रकार कहेगी-'हे देवानुप्रिय! मैंने आर्याओं के समीप धर्म श्रवण किया है। वह धर्म मुझे इच्छित-प्रिय है यावत् रुचिकर लगा है अतः हे देवानुप्रिय! आपकी आज्ञा प्राप्त कर मैं सुव्रता आर्या के पास प्रव्रजित होना चाहती हूँ।'
तए णं से रटकूडे सोमं माहणिं एवं वयासी-मा णं तुमं देवाणुप्पिए! इयाणि मुण्डा भवित्ता जाव पव्वयाहि भुंजाहि ताव देवाणुप्पिए! मए सद्धिं विउलाई भोगभोगाई, तओ पच्छा भुत्तभोई सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए मुण्डा जाव पव्वयाहि॥१३७॥
भावार्य - सोमा ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन कर राष्ट्रकूट उससे कहेगा - 'हे देवानुप्रिय! अभी तुम मुण्डित होकर प्रव्रजित मत होओ किन्तु हे देवानुप्रिये! अभी तुम मेरे साथ विपुल भोगों को भोगो और भुक्त भोगी होने के पश्चात् सुव्रता आर्या के पास मुंडित होकर यावत् प्रव्रजित होना।'
सोमा श्चमणोपासिका बनेगी ... तए णं सा सोमा माहणी व्हाया जाव सरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता विभेलं संणिवेसं मझमज्झेणं जेणेव सुव्वयाणं अजाणं उवस्सएं तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ णमंसइ पञ्जुवासइ। तए णं ताओ सुव्वयाओ अजाओ सोमाए माहणीए विचित्त केवलिपण्णत्तं धम्म परिकहेंति जहा जीवा बझंति। तए णं सा सोमा माहणी सुवयाणं अज्जाणं अंतिए जाव दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ पडिवञ्जिता सुव्वयाओ अज्जाओ वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया।
तए णं सा सोमा माहणी समणोवासिया जाया अभिगय० जाव अप्पाणं भावमाणी विहरइ। तए णं ताओ सुव्वयाओ अजाओ अण्णया कयाइ विभेलाओ
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org