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________________ वर्ग ३ अध्ययन ४ सोमा की दीक्षा १२१ संणिवेसाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरंति॥१३८॥ भावार्थ - तत्पश्चात् सोमा ब्राह्मणी स्नान करके यावत् अलंकारों से अलंकृत हो दासियों के समूह से घिरी हुई अपने घर से निकलेगी निकल कर विभेल सन्निवेश के मध्य भाग से होती हुई सुव्रता आर्याओं के उपाश्रय में आयेगी। आकर सुव्रता आर्याओं को वंदन नमस्कार कर पर्युपासना (सेवा) करेगी। तब सुव्रता आर्या सोमा ब्राह्मणी को अनेक प्रकार के विचित्र केवली प्ररूपित धर्म का उपदेश करेगी - 'किस प्रकार जीव कर्म से बद्ध होते हैं और मुक्त होते हैं। इस प्रकार केवली प्ररूपित धर्म सुन कर वह सोमा ब्राह्मणी सुव्रता आर्या के पास यावत् बारह प्रकार के श्रावक धर्म को स्वीकार करेगी। तत्पश्चात् उन आर्याओं को वंदन नमस्कार कर जिस दिशा से आयेगी उसी दिशा में लौट जायेगी। ... तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी श्रमणोपासिका हो जाएगी और जीव, अजीव आदि तत्त्वों को जान कर श्रावक व्रतों से आत्मा को भावित करती हुए विचरेगी। तत्पश्चात् सुव्रता आर्या किसी समय विभेल सन्निवेश से निकल कर (विहार कर) बाह्य जनपद में विचरण करेगी। सोमा की दीक्षा तए णं ताओ सुव्वयाओ अजाओ अण्णया कयाइ पुव्वाणुपुब्विं....जाव विहरंति। तए णं सा सोमा माहणी इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट० पहाया तहेव णिग्गया जाव वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता धम्म सोच्चा जाव णवरं रटुकूडं आपुच्छामि, तए णं पव्वयामि। अहासुहं....। तए णं सा सोमा माहणी सुव्वयं अज्जं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता सुव्वयाणं अंतियाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव रटुकडे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल० तहेवं आपुच्छइ जाव पव्वइत्तए। अहासुहं देवाणुप्पिए! मा पडिबंध....। तए णं से रटकूडे विउलं असणं तहेव जाव पुवभवे सुभद्दा जाव अज्जा जाया इरियासमिया जाव गुत्तबम्भयारिणी॥१३॥ ____ भावार्थ - तत्पश्चात् सुव्रता आर्या किसी समय पूर्वानुपूर्वी क्रम से ग्रामानुग्राम विचरण करती हुई यावत् पुनः विभेल सन्निवेश में आएगी। तब सोमा ब्राह्मणी इस शुभ समाचार को सुन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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