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________________ वर्ग ३ अध्ययन ४ सुभद्रा आर्या की बच्चों में आसक्ति १०६ आगायमाणी परिगायमाणी परिगायमाणी पुत्तपिवासं च धूयपिवासं च णत्तुयपिवासं च णत्तिपिवासं च पच्चणुभवमाणी विहरइ॥१२३॥ ___ कठिन शब्दार्थ - संमुच्छिया - मूर्च्छित (आसक्त) हो गई, अज्झोववण्णा - आसक्त हो कर, अब्भङ्गणं - अभ्यंगन-तेल से मालिश करना, उन्वट्टणं - उबटन, फासुयपाणं - प्रासुकजल, अलत्तगं - मेहंदी आदि रंजक द्रव्य, कंकणाणि - कंकण-हाथों में पहनने के कड़े, अंजणं- अन्जनकाजल, वण्णगं- वर्णक-चंदन आदि, चुण्णगं - चूर्णक-सुगंधित द्रव्य, खेल्लणगाणि - खेलनकखेलने के लिए पुतली आदि खिलौने, खज्जल्लगाणि - खाने के लिए खाजे आदि, खीरं - दूध, पुष्पाणि - अचित्त फूलों की, गवेसइ - गवेषणा करती है, हलउलेमाणी- हुलराती हुई, आगायमाणीगाती हुई, परिगायमाणी - उच्च स्वर से गाती हुई, पुत्तं पिवासं - पुत्र की लालसा, धूयपिवासं - पुत्री की लालसा, णत्तुयपिवासं - पौत्र की लालसा, णत्तिपिवासं - पौत्री की लालसा। भावार्थ - तत्पश्चात् सुभद्रा आर्या किसी समय गृहस्थों के बालक बालिकाओं में मूर्छित हो गई, उन पर प्रेम करने लगी यावत् उन पर आसक्त हो कर उन बाल बच्चों के शरीर पर मालिश करने के लिए तेल, शरीर का मैल दूर करने के लिए उबटन, पीने के लिए प्रासुक जल, उनके हाथ पैर रंगने के लिए मेहंदी आदि रंजक द्रव्य, हाथों में पहनने के कड़े, काजल, चंदन आदि, सुगंधित द्रव्य, खेलने के लिए खिलौने, खाने के लिए खाजे आदि मिष्टान्न, पीने के लिए दूध और माला आदि के लिए अचित्त फूल आदि की गवेषणा करती। गवेषणा करके उन गृहस्थों के लड़के लड़कियों, कुमार कुमारिकाओं बच्चे बच्चियों में से किसी की तेल मालिश करती, किसी के उबटन लगाती, किसी को प्रासुक जल से स्नान कराती, किसी के पैरों को किसी के होठों को रंगती, किसी की आँखों में काजल डालती, ललाट पर तिलक लगाती, तिलक बिन्दी लगाती, किसी को हिंडोले में झुलाती, कुछ बच्चों को पंक्ति में खड़ा करती, फिर उन पंक्ति में खड़े बच्चों को अलग-अलग खड़ा करती, किसी के शरीर में चंदन लगाती, किसी के शरीर को सुगंधिक चूर्ण (पाउडर) से सुवासित करती। किसी को खिलौने देती, किसी को खाने के लिए खाजे आदि मिष्टान्न देती, किसी को दूध पिलाती, किसी के कंठ में पहनी हुई अचित्त पुष्पमाला को उतारती, किसी को पैरों पर बिठाती तो किसी को अपनी जंघा पर रखती। इस प्रकार किसी को टांगों पर, किसी को गोदी में, किसी को कमर पर, किसी को पीठ पर, किसी को छाती पर, किसी को कंधे पर, किसी को अपने शिर पर बैठाती और हाथों (हथेलियों) में लेकर हुलराती, लोरिया गाती, उच्च स्वर से गाती हुई पुत्र की लालसा, पुत्री की लालसा, पौत्र पौत्रियों की लालसा का अनुभव करती हुई विचर रही थीअपना समय व्यतीत कर रही थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004191
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages174
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size17 MB
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