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आभ्यन्तर-तप
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से किं तं अणच्चासायणा विणए ? अणच्चासायणा विणए पणतालीसविहे पण्णत्ते। तं जहा-अरिहंताणं अणच्चसायणया, अरिहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स अणच्चासायणया।
भावार्थ - अनत्याशातना विनय किसे कहते हैं ? अनत्याशातना विनय के पैंतालीस भेद कहे गये हैं। १. अरिहन्त की आशातना नहीं करना अर्थात् तीर्थंकर भगवान् का अवर्णवाद नहीं बोलना २. अरिहन्त भगवान् के द्वारा कहे गये धर्म की आशातना नहीं करना अर्थात् अवर्णवाद नहीं बोलना।
आयरियाणं अणच्चासायणया, एवं उवज्झायाणं थेराणं कुलस्स गगस्स संघस्स किरियाणं संभोगियस्स।
भावार्थ -३. आचार्यों की आशातना नहीं करना. इसी प्रकार ४ उपाध्यायों की५. स्थविरों - ज्ञानचारित्रवय वृद्धों की ६. कुल की ७. गण की ८. संघ - साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ की ९. क्रियावान् की १०. सांभोगिक- जिसके साथ वन्दना आदि व्यवहार किया जाता हो, उस गच्छ के साधु या एक समाचारी वाले की आशातना नहीं करना। .. आभिणिबोहियणाणस्स सुयणाणस्स ओहि-णाणस्स मणपजवणाणस्स केवलणाणस्स।
- भावार्थ - ११ मतिज्ञान की १२. श्रुतज्ञान की १३. अवधिज्ञान की १४. मन:पर्यवज्ञान की और १५. केवलज्ञान की आशातना नहीं करना। ___एएसिं चेव भत्ति-बहुमाणे, एएसिं चेववण्णसंजलणया।सेतं अणच्चासायणाविणए।
भावार्थ - १६ से ३० इन पन्द्रह की भक्ति-सेवा विनय बहुमान गुणानुराग का ऐसा तीव्र भावावेश-जिसमें पूज्य के प्रति सर्वस्व समर्पण कर देने की भावना रहती है करना और ३१ से ४५ इन पन्द्रह के यश को प्रकाशित करना-फैलाना। यह अनत्याशातना या अनाशातना विनय का स्वरूप है।
से किं तं चरित्तविणए ? चरित्तविणए पंचविहे पण्णत्ते। भावार्थ - चारित्र विनय किसे कहते हैं ? चारित्र विनय के पांच भेद कहे गये हैं।
तं जहा-सामाइय-चरित्तविणए, छेओवट्ठावणिय-चरित्तविणए, परिहारविसुद्धि.. चरित्तविणए, सुहम-संपरायचरित्तविणए, अहक्खाय-चरित्तविणए। सेतंचरित्तविणए।
भावार्थ- जैसे-१. सामायिक चारित्र विनय २. छेदोपस्थापनीय चारित्र विनय ३. परिहार-विशुद्धि चारित्र विनय ४. सूक्ष्म सम्पराय चारित्र विनय और ५. यथाख्यात चारित्र विनय। यह चारित्र विनय है।
से किं तं मणविणए ? मणविणए दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-पसत्थमणविणए, अपसत्थमणविणए।
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