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________________ उववाइय सुत्त तस्याअण्डक-मिवाण्डकमुदर-पुरकत्वादाहारः कुकुट्यण्डकं, तस्सप्रमाणतोमात्राद्वात्रिंशत्तमांशरूपा येषां ते यथा कुकुट्यण्डक प्रमाण मात्राः। अथवा शरीरमेव कुक्कुटी, तन्मुखमण्डकं, तत्राक्षिकपोलकण्ठादिविकृति-मनापाद्य यः कवलो मुखे प्रविशति तत्प्रमाणम्। ___ अर्थ - यह शरीर कुक्कुटी है इस कुक्कुटी का उदर पूरक आहार है, इसलिए आहार को कुक्कुटी अंडग कहते हैं। अथवा शरीर कुक्कुटी है। उसके मुख को अंडग कहते हैं। शरीर के अंग, मुख, आँख, कपोल (गाल), कंठ आदि में किसी प्रकार विकृति (फूलाव) आये बिना जो मुख में आसानी से समा जाए और आसानी से गले में उतर जाए उसको एक कवल (कवा, ग्रास) कहते हैं। इस प्रकार बत्तीस कवल प्रमाण पुरुष का आहार कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि जिस पुरुष का जितना आहार होता है उसके बत्तीसवें भाग को कुक्कुटी अंडग प्रमाण कहते हैं। इस व्याख्या के अनुसार यह समझना चाहिये कि यदि कोई पुरुष अपने हाथ से बत्तीस से अधिक यावत् ६४ कवल भी ले और उतने आहार से उसके उदर (पेट) की पूर्ति होती है तो उतना आहार उसके लिए प्रमाण प्राप्त' कहलाता है। तात्पर्य यह है कि जिस पुरुष का जितना आहार है अर्थात् जितने आहार से उसकी उदर पूर्ति होती है उस आहार को वह अपने हाथ के द्वारा कितने ही ग्रास (कवल) से मुख में क्यों न रखें किन्तु शास्त्रीय भाषा में वह आहार बत्तीस कवल प्रमाण (प्रमाण-प्राप्त) कहलाता है। उस आहार का चतुर्थ अंश (चौथा हिस्सा) खाना अल्पाहार ऊनोदरी है। बारह कवल प्रमाण आहार करना अढाई भाग ऊनोदरी है, उस आहार का आधा भाग खाना द्विभाग प्राप्त ऊनोदरी है। उस आहार का तीन चौथाई भाग खाना चतुर्थ अंश ऊनोदरी है और जिसकी जितनी खुराक है उतना आहार करना 'प्रमाण प्राप्त' आहार कहलाता है। इससे एक कवल भी कम आहार करने वाला मुनि प्रकाम-रस-भोजी नहीं कहलाता है। प्रश्न-अवमोदरिका (ऊनोदरी) को तप क्यों कहा गया है? उत्तर - यद्यपि ऊनोदरी में आहार किया जाता है तथा उसमें भी विगय की मर्यादा का कोई नियम नहीं है फिर इसे तप क्यों कहा गया? यह प्रश्न करना उचित है। इसका उत्तर यह है कि बिलकुल नहीं खाना अर्थात् उपवास करना किसी अपेक्षा से सरल है किन्तु आहार करने के लिए बैठकर पाव पेट अथवा आधा पेट खाकर उठ जाना किसी अपेक्षा कठिन है क्योंकि जो अवमोदरिका तप करता है वह अपनी खाने की इच्छा को रोकता है और इच्छा को रोकना तप है, जैसा कि कहा है "इच्छा निरोधस्तपः" अर्थात् - इच्छा को रोकना तप है, व्यक्ति कुछ भी खाये बिना रह सकता हो तो सर्वोत्तम बात है किन्तु ऐसा संभव नहीं इसलिए खाते हुये भी खाने की इच्छा पर काबू रहे। इस ध्येय की पूर्ति बहुत कुछ इस तप के द्वारा होती है। इसलिए अवमोदरिका को तप कहा गया है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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