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________________ बाह्य तप सेकिंतंभावोमोयरिया ?भावोमोयरियाअणेगविहापण्णत्ता।तं जहा- अप्पकोहे अप्पमाणेअप्पमाए अप्पलोहे अप्पसद्देअप्पझंझे।सेतंभावोमोयरिया। सेतंओमोयरिया। भावार्थ - भाव अवमोदरिका किसे कहते हैं ? भाव अवमोदरिका के अनेक भेद हैं। जैसे - अल्प क्रोध, अल्प मान, अल्प माया, अल्प लोभ, अल्प शब्द अर्थात् कलह अर्थात् क्रोध से होने वाली शब्द की प्रवृत्ति की कमी, अल्प झञ्झ-अविद्यमान कलह विशेष। यह ऐसी भाव अवमोदरिका है। इस प्रकार अवमोदरिका का स्वरूप कहा गया है। विवेचन - अल्प शब्द - १. कलह नहीं करना या २. वचन का अभाव। यहाँ अल्प शब्द का अर्थ अभाव लिया गया है। इसका यह आशय प्रतीत होता है कि क्रोध आदि का उदय तो हो जाता है, किन्तु उन्हें किन्हीं उपायों से टाल देना या इनके निमित्तों से अलग हट जाना। अल्प शब्द थोड़े अर्थ में भी आता है और अभावं अर्थ में भी आता है। से किं तं भिक्खायरिया ? भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहादव्वाभिग्गहचरए___ भावार्थ - भिक्षाचर्या किसे कहते हैं ? भिक्षाचर्या के अनेक भेद हैं। जैसे १. द्रव्य - खाने-पीने की वस्तु आदि से सम्बन्धित प्रतिज्ञा को धारण करने वाले। - विवेचन - द्रव्य अभिग्रह-अमुक वस्तु मिले तो लेने की, द्रव्यों की संख्या आदि की प्रतिज्ञा करना। खेत्ताभिग्गहचरए कालाभिग्गहचरए भावाभिग्गह-चरए। . भावार्थ - २. स्व-पर ग्रामादि से सम्बन्धित प्रतिज्ञा का सेवन करने वाले, ३. पूर्वाण - पहला पहर आदि काल के विषय का अभिग्रह-प्रतिज्ञा करने वाले, ४. गान-हसन-वार्तादि में प्रवृत्त स्त्रीपुरुषादि से सम्बन्धित अभिग्रह करने वाले। - उक्खित्तचरए णिक्खित्तचरए उक्खित्त-णिक्खित्त-चरए णिक्खित्त-उक्खित्तचरए वट्टिज-माण-चरए साहरिजमाणचरए। भावार्थ - ५. भोजन पकाने के पात्र से गृहस्थ के अपने प्रयोजन के लिये निकाले हुए आहार के प्राप्त होने की प्रतिज्ञा करने वाले, ६. पाक भाजन - भोजन के पात्र से नहीं निकाले हुए आहार को लेने की प्रतिज्ञा करने वाले, ७. पाक भाजन से निकाल कर वहीं या अन्यत्र रखे हुए आहार की अथवा स्वप्रयोजन के लिये निकाले हुए और नहीं निकाले हुए दोनों तरह के आहार की लेने की प्रतिज्ञा वाले ८. पाक भाजन में रहे हुए भोजन में से गृहस्थ के स्व-प्रयोजन के लिए निकाले जाते हुए अर्थात् एकाध चम्मच निकाला हो और कुछ निकालना बाकी हो ऐसे आहार को लेने की प्रतिज्ञा वाले ९. खाने के लिये परोसे हुए भोजन में से लेने की प्रतिज्ञा वाले १० जो भोजन ठंडा करने के लिये पात्रादि में फैलाया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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