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________________ ५८ उववाइय सुत्त वा खले वा घरे वा अंगणे वा, कालओ समये वा आवलियाए वा आणा-पाणुए वा, थोवे वा, लवे वा, मुहुत्ते वा, अहोरत्ते वा, पक्खे वा, मासे वा अयणे वा अण्णतरे वा दीह-काल-संजोगे, भावओं कोहे वा माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा एवं तेसिंण भवइ। भावार्थ - द्रव्य से सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यों में, क्षेत्र से ग्राम, नगर, जंगल, खेत, खला, घर और आंगन में, काल से समय, आवलिका यावत् अयन और अन्य भी दीर्घकालीन संयोग में और भाव से क्रोध, मान, माया, लोभ, भय या हास्य में-उनका ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं था। विवेचन - १. काल का अविभाज्य अर्थात् जिसका फिर भाग नहीं किया जा सके ऐसे निर्विभाग अंश को 'समय' कहते हैं। २. आवलिका - असंख्यात समय की एक आवलिका होती है। ३. उच्छ्वाससंख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास होता है। ४. निःश्वास - संख्यात आवलिका का एक नि:श्वास होता है। ५.प्राण - एक उच्छ्वास और नि:श्वास का एक प्राण होता है। ६. स्तोक-७ प्राण का एक स्तोक होता है। ७. लव - ७ स्तोक का एक लव होता है। ८. महत - ७७ लव या ३७७३ प्राण का एक मुहूर्त होता है। ९. अहोरात्र - ३० मुहूर्त का एक अहोरात्र होता है। १०. पक्ष - १५ अहोरात्र का एक पक्ष होता है। ११. मास- दो पक्ष का एक मास (महीना) होता है। १२. ऋतु - दो मास की एक ऋतु होती है। १३. अयन - तीन ऋतुओं का एक अयन होता है। १४. संवत्सर - दो अयन का एक संवत्सर होता है। १५. युग- पांच संवत्सर का एक युग होता है। प्रश्न - कितनी आवलिका का एक मुहूर्त होता है ? उत्तर - १६७७७२१६ आवलिका का एक मुहूर्त होता है। जैसा कि कहा है - तीन साता दो आगला, आगल पाछल सोल। इतनी आवलिका मिलाय के, एक मुहूर्त तूं बोल॥ प्रश्न - ऋतुएं कितनी हैं और वे कौन कौनसी हैं ? उत्तर - आगम के अनुसार ऋतुएं छह हैं (ठाणाङ्ग ६) इनके नाम इस प्रकार हैं - १. प्रावृट् - आषाढ और श्रावण। २. वर्षा - भाद्रपद और आश्विन। ३. शरद् - कार्तिक और मार्गशीर्ष (मिगसर)। ४. हेमन्त - पौष और माघ। ५. वसन्त - फाल्गुन और चैत्र। ६. ग्रीष्म - वैशाख और ज्येष्ठ। बहद होडाचक्र आदि ज्योतिष ग्रन्थों में लोक व्यवहार के नाम इस प्रकार बतलाये हैं - १.वसन्त- चैत्र और वैशाख। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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