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उववाइय सुत्त
निर्ग्रन्थों की ऋद्धि भगवान् के साथ जो श्रमण थे, वे कैसे थे, सो उनका वर्णन किया जाता है -
१५- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे णिग्गंथा भगवंतो।
भावार्थ - उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी बहुत-से निर्ग्रन्थ-बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित भगवान् के साथ में थे।
अप्पेगइया आभिणिबोहियणाणी जाव केवलणाणी
भावार्थ - जिनमें कई आभिनिबोधिकज्ञानी-इन्द्रियों और मन के द्वारा, योग्य देश में स्थित पदार्थों को जानने वाले यावत् केवलज्ञानी-आत्मप्रदेशों से सम्पूर्ण द्रव्यों और उनकी तीनों काल की समस्त अवस्थाओं को जानने वाले थे।
विवेचन - 'जाव' शब्द से 'सुयणाणी ओहिणाणी मणपजवणाणी' पदों का संग्रह किया गया है। वे श्रुतज्ञानी-अंगादि सिद्धान्तों के ज्ञाता, अवधिज्ञानी-मन और इन्द्रियों की सहायता के बिना आत्मा से ही रूपी पदार्थों के ज्ञाता और मनःपर्यवज्ञानी-मन की अवस्थाओं से मनः चिन्तित बातों के ज्ञाता थे। अर्थात् कई दो ज्ञान के (मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के) धारक थे, तो कई तीन ज्ञान- (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान या मनःपर्यवज्ञान के) चार ज्ञान- (मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान) के और एक ज्ञान-केवलज्ञान के धारक थे। ___अप्पेगइया मणबलिया वयबलिया कायबलिया णाणबलिया दंसणबलिया चारित्तबलिया।
- कई मनोबली-मन की स्थिरता के धारक, वचनबली- प्रतिज्ञात अर्थ-कहे हुए आशय का निर्वाह करने वाले या परपक्ष को क्षोभकारी वचनशक्ति के धारक और कायबली-भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि परीषह के सहने में ग्लानि से रहित रहने की कायिक शक्ति के धारक थे। कई ज्ञान बली दर्शनबली और चारित्रबली के धारक थे। __अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गह समत्था, वएणं सावाणुग्गह समत्था, काएणं सावाणुग्गह समत्था।
- कई मन से शाप-अपकार और अनुग्रह-उपकार करने में समर्थ थे। कई वचन से शाप और कृपा करने में समर्थ थे और कई काया से शाप और कृपा करने में समर्थ थे।
अप्पेगइया खेलोसहि-पत्ता।
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