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उववाइय सुत्त
भगवान् का आगमन १३- तए णं समणे भगवं महावीरे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुलुप्पलकमल-कोमलु-म्मिलियम्मि अह पंडुरे पहाए-रत्तासोगप्पगास किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धराग-सरिसे कमलागर-संडे-बोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलंते, जेणेव चंपा णयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवा-गच्छइ उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिणिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।.
भावार्थ - तब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी फैलते हुए प्रकाश से बिदाई लेती हुई रात्रि मेंऊषाकाल में फूलते हुए पद्यों की कोमल पंखुरियाँ और हरिणों की सुकुमार आँखें खुल रही थीं-ऐसे उजले प्रभात में, लाल अशोक के समान प्रभाव वाले, पलाश-खांखरे के फूल, शुक की चोंच और गुंजाफल के आधे भाग की लाली के समान अरुण-लाल कमलाकरों-जलाशयों के कमल वन के चेतना-प्रदायक, हजार किरणों वाले दिन के स्रष्टा, तेज से ज्वाज्वल्यमान सूर्य के उदय होने पर, जहाँ चम्पा नगरी थी-जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ पधारे। पधारकर संयम मार्ग के अनुकूल आवास को ग्रहण करके, संयम और तप से आत्मा को प्रभावित करते हुए विचरने लगे।
। भगवान् के अन्तेवासी १४- तेणं कालेणं तेणंसमएणंसमणस्स भगवओमहावीरस्सअंतेवासी बहवे समणा भगवंतो, अय्येगइया उग्गपव्वइया भोगपव्वइया राइण्णपव्वइया णायपव्वइया कोरव्यपव्वइया खत्तियपव्वइया, भड़ा- जोहा सेणावई पसत्थारो सेट्ठी इब्भा अण्णे य बहवेएवमाइणो, उत्तम-जाइ-कुल-रूव-विणय-विण्णाण-वण्ण-लावण्ण-विक्कमपहाण-सोहग्ग-कंति-जुत्ता बहु-धण धण्ण-णिचय-परियाल-फिडिआ णरवइगुणाइरेगा इच्छिय भोगा सुह-संपललिया, किंपाग-फलोवमं च मुणिय विसयसोक्खं, जलबुब्बुय-समाणं कुसग्ग जलबिंदु-चंचल जीवियं च णाऊण, अद्भुवमिणं रयमिव पडग्गलग्गं संविधुणित्ता णं चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइया अप्पेगइया अद्धमासपरियाया अप्पे-गइया मासपरियाया एवं दुमास-तिमास........जाव -एक्कारस-मासपरियायाअप्पेगइयावासपरियायादुवास.....तिवास-परियाया, अप्पेगइयाअणेगवासपरियाया, संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरंति।
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