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________________ वनखण्ड वर्णन ११ 'पुजारियों के लिये' आदि पदों से और जनता के आवेश के वर्णन से जनभावना और जिन आज्ञा का विलगाव किया गया है, अतः विकथा नहीं। कीचड़ से निकलने के लिए होने वाला कीचड़ का मर्दन पंक-क्रीडा नहीं, किन्तु पंक-तरण है। ' वनखण्ड वर्णन ३- से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वण-संडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। से णं वणसंडे किण्हे किण्होभासे, णीले णीलोभासे, हरिए हरिओभासे, सीए सीओभासे, णिद्धे णिद्धोभासे, तिव्वे तिव्वोभासे, किण्हे किण्हच्छाए णीले णीलच्छाए, हरिए हरियच्छाए, सीए सीयच्छाए, णिद्धे णिद्धच्छाएं, तिव्वे तिव्वच्छाए, घणकडिअ-कडिच्छाए, रम्मे महामेह णिकुरंबभूए। कठिन शब्दार्थ - णिद्धे - स्निग्ध, किण्हे - कृष्ण-काला, किण्हच्छाए - कृष्णछायः-छाया आदित्यावरणजन्यो वस्तुविशेषः-सूर्य के ढक जाने पर जोहो उसे छाया कहते हैं। घणकडिअ कडिच्छाएबहलनिरन्तरच्छाय-एक वृक्ष की शाखा दूसरे वृक्ष से मिली हुई थी इसलिए सघन छाया वाला। महामेहणिकुरंबभूए - महामेघवृन्दकल्प:-महामेघ के वृन्द (समूह) के समान।। भावार्थ - वह पूर्णभद्र चैत्य-व्यंतरायतन एक बहुत बड़े वनखण्ड से, दिशा-विदिशा में चारों ओर से घिरा हुआ था। उस वनखण्ड का अवभास-झांकी और छाया-कांति दीप्ति काली, नीली, हरी, शीतल, स्निग्ध चिकनी और तीव्र थी। वह स्वयं भी इन गुणों से युक्त था। वह शाखाओं के परस्पर चटाई के समान गुंथ जाने के कारण, घनी छाया से युक्त था। उसका दृश्य महामेघ की घिरी हुई घटा के समान रम्य था। . .विवेचन - दृश्य के वर्णन में 'कृष्ण' आदि शब्द दुबारा आये हैं। किन्तु इसमें पुनरुक्ति दोष नहीं है। क्योंकि वे शब्द पहली बार 'अवभास' के और दूसरी बार छाया के विशेषण के रूप में आये हैं और उन विशेषण युक्त पदों के पहले आये हुए 'कृष्ण' आदि वनखण्ड के विशेषण कार्य-कारण भाव के सूचक हैं। वृक्ष-जाति की विविधता और पत्तों की अवस्था के अनुसार दूर से प्रदेशान्तर में दिखाई देने वाले तिरंगें दृश्य का वर्णन करके, बाद में उसकी होने वाली असर का उल्लेख किया गया है। वह असर दृश्य-दर्शन के पश्चात् मनोवेग-जनित या दृश्य की प्रभा और दीप्ति के पुद्गलों और स्पर्शनेन्द्रिय के सम्बन्ध से जनित होना संभव है। ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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