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________________ १८६ उववाइय सुत्त और सातवें समय में औदारिक मिश्र शरीर से कायिक क्रिया करते हैं और तीसरे, चौथे और पांचवें समय में कार्मण शरीर से कायिक क्रिया करते हैं। समुद्घात के बाद की योग प्रवृत्ति से णं भंते ! तहा समुग्घायगए सिज्झइ? बुज्झइ? मुच्चइ? परिणिव्वाइ? सव्वदुक्खाणमंतं करेइ?-णो इणढे समढे। भावार्थ - हे भन्ते ! क्या कोई समुद्घातगत-समुद्घात में स्थित रहते हुए ही सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं? परिनिर्वृत्त होते हैं ? सब दुःखों का अन्त करते हैं ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। . से णं तओ पडिणियत्तइ। पडिणियत्तिता इहमागच्छइ। आगच्छित्ता तओ पच्छा मणजोगं पि जुंजइ। वयजोगं पि जुंजइ। कायजोगं पि जुंजइ। भावार्थ - उससे-समुद्घात से-प्रतिनिर्वृत्त होते हैं। यहाँ अर्थात् इस मनुष्यलोकगत शरीर में स्थित होते हैं। फिर मन की क्रिया भी करते हैं, वचन की क्रिया भी करते हैं और काया की क्रिया भी करते हैं। ___मणजोगंगँजमाणेकिंसच्चमणजोगंजुंजइ?मोसमणजोगंगँजइ?सच्चामोसमणजोगं जुंजइ?असच्चामोसमणजोगंगँजइ?- गोयमा!सच्चमणजोगंगँजइ।णो मोसमणजोगं जंजइ।णो सच्चामोसमणजोगं जुंजइ।असच्चामोसमण जोगं पि जुंजइ। भावार्थ - मन की क्रिया में संलग्न होते हुए, क्या सत्य मन की क्रिया में या असत्य मन की क्रिया में या सत्यमृषा-सच-झूठ-मिश्र मन की क्रिया में या असत्य-अमृषा-न सच न झूठ-व्यवहार मन की क्रिया में संलग्न होते हैं ? हे गौतम ! सत्य मन की क्रिया करते हैं। असत्य मन की और सत्यमृषा मन की क्रिया नहीं करते हैं। असत्य-अमृषा मन की क्रिया भी करते हैं। वयजोगंजुंजमाणे किं सच्चवइजोगंगँजइ? मोसवइजोगंजुंजइ।सच्चामोसवइजोगं जुंजइ ? असच्चामोसवइजोगं जुंजइ। गोयमा ! सच्चवइजोगं जुंजइ। णो मोसवइजोगं जुंजइ। णो सच्चामोसवइजोगं जुंजइ।असच्चामोसवइजोगं पि जुंजइ। भावार्थ - वचन की क्रिया में प्रवृत्त होते हुए, क्या सत्य वचन या मृषा वचन या सत्यमृषा वचन या असत्य-अमृषा वचन योग की प्रवृत्ति करते हैं? ... हे गौतम ! सत्य वचन योग की प्रवृत्ति करते हैं। मृषा वचनयोग की और सत्य-मृषा वचन योग की प्रवृत्ति नहीं करते हैं। असत्य-अमृषा वचनयोग की भी प्रवृत्ति करते हैं। विवेचन - मनःपर्यव ज्ञानी या अनुत्तर विमानवासी देवों के द्वारा मन से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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