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उववाइय सुत्त
आजीविक मत के अनुयायियों का उपपात से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु आजीविया भवंति। तंजहा-दुघरंतरिया तिघरंतरिया सत्तघरंतरिया उप्पलबेंटिया घरसमुदाणिया विजुअंतरिया उट्टियासमणा।
भावार्थ - ये जो ग्राम यावत् सन्निवेशों में आजीविक गोशालक मतानुयायी होते हैं। जैसे-एक घर से भिक्षा लेकर, बीच में दो घरों को छोड़कर भिक्षा लेने वाले, तीन घर के अन्तर से भिक्षा लेने वाले, सात घर के अन्तर से भिक्षा लेने वाले, नियम विशेष से कमलडंठल की भिक्षा लेने वाले, प्रत्येक घर पर भिक्षाटन करने वाले, बिजली चमकने पर भिक्षा-ग्रहण नहीं करने वाले और मिट्टी के बड़े भाजन में प्रविष्ट होकर तप करने वाले।
ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणित्ता, कालमासे कालं किच्चा, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई जाव बावीसं सागरोवमाइं ठिई। अणाराहगा। सेसं तं चेव॥१७॥
भावार्थ - वे इस प्रकार की चर्या से बहुत वर्षों की पर्याय-अवस्था को पालकर, काल के समय में काल करके, उत्कृष्ट अच्युत कल्प-बारहवें स्वर्ग में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। उनकी बावीस सागरोपम की स्थिति होती है। वे परलोक के आराधक नहीं होते हैं। शेष पूर्ववत्।
अत्तुक्कोसिय.....उपपात से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति। तं जहाअत्तुक्कोसिया परपरिवाइया भूइकम्मिया भुजो भुजो कोउयकारगा।
भावार्थ - ये जो ग्राम यावत् सनिवेशों में प्रव्रजित श्रमण होते हैं। जैसे-आत्मोत्कर्षिक-अपना ही उत्कर्ष बतलाने वाले, पर-परिवादिक-दूसरों के निन्दक, भूतिकर्मिक-ज्वरादि से पीडितों की उपद्रव से रक्षा के लिये भूति-भभूत-भस्मि देने वाले और बार-बार कौतुक-सौभाग्यादि के निमित्त की जाने वाली क्रिया विशेष करने वाले। ___ ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूइं वासाइं सामण्ण-परियागं पाउणंति। पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय अपडिक्कंता, कालमासे कालं किच्चा, उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगेसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई जाव बावीसं सागरोवमाइं ठिई परलोगस्स अणाराहगा। सेसं तं चेव॥ १८॥
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