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चैत्य वर्णन
पंच-वण्ण-सरस-सुरहि-मुक्क-पुष्फ-पुंजोवयार-कलिए, कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-मघ-मघंत-गंधुद्धयाभिरामे, सुगंध-वर-गंध-गंधिए, गंधवट्टिभूए, णड-णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलंबय-पवग-कहग-लासगआइक्खग-लंख-मंख-तूणइल्ल-तुंब-वीणिय-भुयग-मागह-परिगए, बहुजणजाणवयस्स विस्सुय-कित्तिए, बहुजणस्स आहुस्स आहुणिजे, पाहुणिज्जे, अच्चणिज्जे, वंदणिज्जे, णमंसणिजे, पूयणिजे, सक्कारणिजे, सम्माणणिजे, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, विणएणं पज्जुवासणिजे, दिव्वे, सच्चे, सच्चोवाए सण्णिहिय-पाडिहेरे, जाग-सहस्स-भाग-पडिच्छए (यागभागदाय सहस्स पडिच्छए) बहुजणो अच्चेइ आगम्म पुण्णभई चेइयं पुण्णभदं चेइयं।
कठिन शब्दार्थ - पुष्फ - पुष्प-फूल, पुंज - ढेर, उवयार - उपरचित-रचना की हुई, कुदुरुक्ककुन्दुरुष्क-गंध द्रव्य विशेष-चीड़, तुरुक्क - तुरुष्क-लोबान, मघ-मघंत - अत्यन्त गंधयुक्त, उद्धय - सब जगह फैला हुआ, गंधवट्टिभूए - गंध की बत्ती के समान, भुयग - भोजक-सेवक, मागह - मागध-स्तुतिपाठक, आहुस्स - हवन करने वाले-दाता, आहुणिजे-दानपात्र, पाहुणिजे- बार-बार दान देने योग्य, दिव्वे - दिव्य, सच्चे - सत्य, सच्चोवाए- सेवा का फल देने वाला, सण्णिहिय-पाडिहेरेअतिशय और अतीन्द्रिय प्रभाव युक्त, यागभागदाय सहस्स पडिच्छए - इसके नाम से हजारों लोग दान देते थे, आगम्म - आकर।
भावार्थ - वह चैत्य पंचरंगी सरस सुगन्धित ढेर के ढेर डाले गये फूलों की पूजा से कलितशोभित था। काले अगर, श्रेष्ठ कुंदुरुक्क और तुरुक्क के धूप की महक से युक्त गंध के द्वारा वातावरण अभिराम मनोरम बना रहता था। सुगंध से सुवासित रहता था। महक की लपटें उठा करती थीं-सुगंधित धुएं की इतनी प्रचुरता थी कि जिससे (गंध की) गोल गुटिकाएं (छल्ले) बन रही थी। वह चैत्य नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विदूषक-हास्यकला-मर्मज्ञ, प्लवक-तैराक या वानरचेष्टा करने वाले, कथावाचक-कथक रासकों के आलपक, भविष्य भाखने वाले, बांस के अग्रभाग पर खेलने वाले, देवता-वीर आदि से सम्बन्धित चित्रपट दिखलाने वाले, तुनतुनी बजाने वाले, वीणा-वादक, भुजगभौगि या भोजक-पुजारी और मागध-भाट, यशोगान के गायकों से पूरा भरा रहता था। बहुत से नगर निवासियों और देश-निवासियों में उसकी कीर्ति कर्ण-परम्परा से फैली हुई थी। बहुत से नागरिकोंआहोता-दानियों पूजकों के लिए वह आह्वान करने योग्य, विशिष्ट रीतियों से आह्वान करने योग्य, चन्दन आदि सुगंधित द्रव्यों से अर्चना करने योग्य, स्तुतियों से वंदना करने योग्य, अंगों को झुका कर नमस्कार करने योग्य, फूलों से पूजने योग्य, वस्त्रों से सत्कार करने योग्य, मन से आदर देने योग्य, कल्याण-मंगल-देव और इष्टदेव रूप (में मानकर) विनय सहित पर्युपासना करने योग्य, दिव्य सत्य
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