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________________ . अभिवन्दना के लिए प्रस्थान ११७ सणंदिघोसाणं सखिंखिणी-जालपरिक्खित्ताणं हेमवयचित्ततेणिसकणगणिज्जुत्तदारुयाणं कालायससुकय णेमि-जंत-कम्माणं सुसिलिट्ठवत्तमंडलधुराणं सुसंविद्ध-चक्कमंडलधुराणं आइण्ण-वरतुरग-सुसंपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्गहिआणं हेमजाल गवक्खजाल खिंखिणि-घण्टाजाल परिक्खित्ताणं बत्तीसतोणपरिमंडियाणं सकंकडवडेंसगाणं सचावसर-पहरणावरण-भरिय-जुद्ध-सज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं। भावार्थ- इसके बाद एक सौ आठ रथ यथाक्रम आगे बढाये गये। वे रथ. छत्र. ध्वज. घण्टा. पताका, तोरण और नंदिघोष-बारह प्रकार के बाजों की ध्वनि से यक्त थे। छोटी घण्टियों या बंघरियों के जाल से ढंके हुए थे। उनमें हिमवान् पर्वत पर उत्पन्न हुए विविध प्रकार के तिनिश-शीशम की जाति के वृक्ष की स्वर्ण खचित लकड़ी लगी हुई थी। 'कालायस' (एक जाति का लोहा) से नेमिपहिये की परिनी-पाटे को बन्धन-क्रिया-यंत्र कर्म के द्वारा सन्दर बनाई गई थी। उन रथों की धराएँ सुश्लिष्ट-उत्तम रीति से संधी हुई और बिलकुल गोल थीं। उनमें जातिवान् सुन्दर घोड़े जुते हुए थे और उनकी बागडोर, सारथि-कला में कुशल पुरुष पकड़े हुए थे। वे बत्तीस तोणों-तरकशों से सुसज्जित थे। कवचों और टोपों से युक्त थे। उनमें धनुष्य, बाण, खड्ग आदि युद्ध की सामग्री भरी हुई थी। . विवेचन - नंदिघोष अर्थात् बारह प्रकार के तूर्यों-बाजों का घोष। बारह तूर्य ये हैं - भंभा १, मउंद २, मद्दल ३, कडंब ४, झल्लरि ५, हुडुक्क ६, कंसाला ७। काहल ८, तलिमा ९, वंसो १०, संखो ११, पणवो १२, य बारसमो॥ तयाऽणंतरंचणंअसि-सत्ति-कोंत-तोमर-सूल-लउड-भिंडिमाल-धणु-पाणिसजं पायत्ताणीयं सणद्धबद्धवम्मियकवयाणं उप्पीलियसरासण वट्टियाणं पिणद्धगेवेजविमलवरबद्धचिंधपट्टाणं गहियाउहप्पहरणाणं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठियं। भावार्थ - उन रथों के पीछे तलवार, शक्ति, कुन्त-भाला, लकुट-लट्ठियाँ, भिण्डिमाल और धनुष हाथ में लिये हुए, पदातिदल-पैदल सेना आगे आगे क्रमशः चल रहा था। ___तए णं से कोणिए राया हारोत्थय-सुकयरययवच्छे कुंडलउजोवियाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे णरवई णरिंदे णरवसहे मणुय-राय-वसभकप्पे अब्भहियराय-तेयलच्छीए दिप्पमाणे हथिक्खंधवरगए। भावार्थ - उनके बाद कोणिक राजा था। उसका वक्षस्थल हारों से सुशोभित था। कुण्डलों से मुख द्युतिमान हो रहा था। मुकुट से शिर देदीप्यमान था। वह नरों में सिंह, नरों के स्वामी नरों के इन्द्र, नरों में लिए हुए भार के निर्वाहक वृषभ और नृपतियों के नायक-चक्रवर्ती के तुल्य थे। हाथी के श्रेष्ठ स्कंध-खंधे पर स्थित अत्यधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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