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________________ ११८ उववाइय सुत्त सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं सेय-वरचामराहिं उद्धवमाणीहिं उद्धवमाणीहिं वेसमणे चेव णरवई अमरवई-सण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती। भावार्थ - कोरंट पुष्प की माला से युक्त छत्र को धारण किये हुए थे। श्रेष्ठ सफेद चामर ढुलाये जा रहे थे। वेश्रमण, नरपति-चक्रवर्ती और अमरपति-इन्द्र के तुल्य ऋद्धि से प्रसिद्ध कीर्ति वाले थे। हयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव पहारेत्थ गमणाए।तएणं तस्स कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्सं पुरओ महंआसा आसधरा आसवरा-उभओ पासिंणागाणागधरा, पिट्ठओरहसंगेल्लि। भावार्थ - वह अश्व, गज रथ और श्रेष्ठ योद्धा रूप चतुरंगिणी सेना से अनुगम्यमान-अनुगमन किये जाते हुए मार्ग में जहाँ पूर्णभद्र उद्यान था वहाँ जाने के लिए इच्छा सहित प्रवृत्त हुए। तब भंभसारपुत्र कोणिक राजा के आगे बड़े-बड़े घोड़े और घुड़ सवार थे, आजु बाजु हाथी और हाथी सवार थे और पीछे रथ समुदाय था। ____तए णं से कोणिए राया भंभसारपुत्ते अब्भुग्गयभिंगारे पग्गहियतालियंटे उच्छियसेयच्छत्ते पवीइयवालवीयणीए सव्विड्डीए सव्वजुत्तीए सव्वबलेणंसव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपगईहिं सव्वणायगेहिं सव्वतालायरेहिं सव्वोरोहेहिं सव्वपुप्फ गंध वास मल्लांलकारेणं सव्वतुडियसद्द सणिणाएणं, महया इड्डीए, महया जुत्तीए, महया बलेणं, महया समुदएणं, महया वरतुडियजमगसमगपवाइएणंसंख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरवमुइंग-दुंदुभि-णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए णयरीए मझं मझेणं णिगच्छइ। - भावार्थ - वह भंभसारपुत्र कोणिक राजा चम्पानगरी के मध्य से हो कर जा रहा था। उसके सामने सोवनझारी-पुरुष के द्वारा उठाई हुई थी। किसी के द्वारा पंखा झला जा रहा था। किसी के हाथ में सफेद छत्र ग्रहण किया हुआ था। इस प्रकार झली जाती हुई वालव्यजनिका-छोटे पंखे या चँवरी, सर्वऋद्धि-आभरणादि रूप लक्ष्मी, सर्व युक्ति-परस्पर उचित पदार्थों के संयोग, सर्व-बल सेना, सर्व समुदय-परिवारादि समुदाय, सर्व आदर-प्रयत्न, सर्व विभूति, सर्व विभूषा, सर्व संभ्रम-भक्ति जन्य उत्सुकता, सर्व पुष्प वास, माल्य और अलंकार और सर्व बजते हुए बाजों से युक्त एवं महती ऋद्धि, महती युति, महती सेना, महान् समुदय और एक साथ बजते हुए बहुत-से बाजे के साथ थे। शंख, भाण्डों के ढोल, नगाड़े, भेरी, झल्लरी, खरमुही-काहला, हुडुक्का, मुरज, मृदंग और दुंदुभि के निर्घोष की ध्वनि गूंज रही थी। कोणिक का जनता द्वारा स्वागत ३२. तए णं कोणियस्सरण्णो चंपा णगरि मझं मझेणं णिग्गच्छमाणस्स बहवे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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