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________________ अभिवन्दना के लिए प्रस्थान ११५ भावार्थ - इसके बाद जल से परिपूर्ण कलश एवं झारी और दिव्य छत्र पताका-जो कि चामर से युक्त, राजा के दृष्टिपथ में स्थित वायु से फहराती हुई विजय सूचक 'वैजयन्ती' नामक लघुपताकाओं से युक्त और ऊँची उठाई हुई थी, वह-गगन तल को स्पर्श करती हुई-सी आगे रवाना हुई। तयाऽणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसियविमलं आयवत्त-पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकरकम्मकरपुरिसपायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुव्वीए संपद्वियं। भावार्थ - इसके बाद वैडूर्य-लहसुनिया रत्न के दैदीप्यमान विमल दण्डवाला, कोरण्ट पुष्प की लम्बी लटकती हुई मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमण्डल के समान ऊँचा तना हुआ श्रेष्ठ आतपत्र- धूप से रक्षा करने वाला-छत्र, सिंहासन और श्रेष्ठ मणिरत्नों का पादपीठ-पैर रखने की चौकी-जिस पर राजा की पादुका की जोड़ रखी हुई थी और जो अनेक किङ्करों-प्रत्येक कार्य पृच्छापूर्वक करने वाले सेवक या किसी खास कार्य-विभाग में नियुक्त वैतनिक सेवक और पदातियों-पैदल सैनिकों से घिरा हुआ था-आगे आगे क्रमशः रवाना किया गया। तयाऽणंतरं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चावग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलगग्गाहा पीढग्गाहा वीणग्गाहा कूवग्गाहा हडप्फग्गाहा पुरओ अहाणुपुव्वीए संपट्ठिया। भावार्थ - इसके बाद बहुत-से लट्ठधारी, कुंत-भाला विशेष धारी, धनुर्धारी, चामरधारी, पाशा-बूत सामग्री धारी, पुस्तक-आय के ज्ञान के लिए रखी जाने वाली नोंध या पण्डित के उपकरण-धारी, फलकधारी, पीठ-आसन विशेष धारी, वीणाधारी, कुतुप- पक्व तैलादि के भाजन या सुगंधित तैल के शीशे धारी और हडप्फ-द्रम्मादि सिक्के के भाजन या सुगन्धित चूर्ण-ताम्बूल आदि के लिए सुपारी आदि के डिब्बे-धारी पुरुषों को रवाना किये। - तयाऽणंतरं बहवे डंडिणो मुंडिणो सिंहडिणो जडिणो पिंछिणो हासकरा उमरकरा दवकरा चाटुकरा वादकरा कंदप्पकरा कोक्कुइया किट्टिकरा वायंता गायंता हसंता णच्चंता भासंता सावेंता (असिलट्ठिकुंतचावे, चामरपासे य फलगपात्थे य। वीणकूयग्गाहे, तत्तो य हडप्फगाहे य॥ १॥ दंडी, मुंडी, सिहंडी, पिच्छी जडिणो य हासकिड्डा य। दवकारा चटुकारा, कंदप्पिय कोक्कुइयगाहा॥ २॥ गायंता वायंता, णच्चंता तह हसंत हासिंता। सावेंता रावेंता, आलोय जयं पउंजंता॥ ३॥) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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