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उववाइय सुत्त
लणकरणगुणणिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंससुहाए तया-सुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए संवाहणाए संवाहिए समाणे;
भावार्थ - तैलचर्म-आसन विशेष पर स्थित होकर हाथ-पैर के अत्यन्त कोमल तले वाले पुरुषों के द्वारा अस्थिसुखा-हड्डियों के लिए सुखकर, मांससुखा, त्वक्सुखा-चमड़ी के लिये सुख कर और रोमसुखा-इन चार प्रकार की सम्बाधना-चंपी से सम्बाधित (चंपी की गई है, जिनकी ऐसे) हुए। वे चंपी करने वाले पुरुष छेक निपुण, दक्ष, चतुर, प्राप्तार्थ-उस विषय के आचार्य से उस कला को सीखे हुए, कुशल-सम्बाधना कर्म में श्रेष्ठ या साधक, मेधावी-अपूर्व विज्ञान को ग्रहण करने की शक्ति वाले, अंगमर्दन आदि सूक्ष्म कलाओं के ज्ञाता और अभ्यंगन-तैलादि मर्दन, परिमर्दन- तैलादि को अंगों में पहुँचाने के लिये किये जाने वाले मर्दन विशेष और उद्वलन-उलटे रोएँ से किया जाने वाला मर्दन या मर्दन के बाद मल उतारने की क्रिया विशेष के करने में जो गुण हैं उनको निपजाने की शक्ति वाले थे। . विवेचन - इस सूत्र में अभ्यंगनकला और सम्बाधनाकला का संक्षेप में वर्णन हैं। इन कलाओं की भी शिक्षा ली जाती थी और उसके शिक्षण में भी पात्र-अपात्र का विचार किया जाता था।
तैलचर्म-तैलमर्दन के बाद जिस पर स्थित रह कर चंपी करवाई जाती है, उसे तैलचर्म कहते हैं। अवगयखेयपरिस्समे अट्टणसालाउ पडिणिक्खमइ।
भावार्थ - कोणिक राजा इस प्रकार खेद-दीनता या अनुत्साह और परिश्रम (व्यायाम-जनित शरीर की अस्वस्थता विशेष) के दूर हो जाने पर व्यायामशाला से बाहर निकला।
पडिणिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ। तेणेव उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसइ।
भावार्थ-जहाँ स्नान घर था वहाँ आया उसमें प्रवेश किया।
अणुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे विचित्त-मणि-रयणकुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाणमंडवंसि णाणामणिरयण-भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे, सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुष्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो पुणो कल्लाणगपवरमजणविहीए मजिए।
भावार्थ - स्नान घर में प्रवेश करके, चारों ओर जाली अथवा मुक्ताजाली से व्याप्त अभिराम और विचित्र मणिरत्नों से बने हुए रमणीय आंगन वाले तथा नाना मणि-रत्नों से चित्रमय बनी हुई भित्ति वाले स्नानमण्डप में स्नानपीठ-स्नान के लिये बैठने की चौकी - पर सुख से बैठा। फिर तीर्थ आदि के जल अथवा सुखोदक-जिसका स्पर्श सुखकर बनाया गया हो ऐसा जल, गन्धोदक-श्रीखण्ड-चन्दन आदि रस से मिश्रित जल, पुष्पोदक- पुष्परस मिश्रित जल और शुद्धोदक-स्वाभाविक जल से कल्याणक- आनंदकारी और अतिश्रेष्ठ स्नान की विधि से स्नान किया।
तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमजणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते।
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