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अभिवन्दना की तैयारी
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भावार्थ - देवानुप्रिय का आभिषेक्य-प्रधान हाथी तैयार है। घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सजा दी गई है। सुभद्रा आदि देवियों के लिये जुते हुए यान बाहरी सभा भवन में खड़े हैं और चम्पानगरी बाहर-भीतर से स्वच्छ, सिञ्चित यावत् महक से युक्त बना दी है। तो हे देवानुप्रिय ! अब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की अभिवन्दना के लिये प्रस्थान करें।
कोणिक का स्नान मर्दन आदि ३१. तएणं से कोणिए राया भंभसारपुत्ते बल-वाउयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हद्वतुट्ठ जाव हियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ उबागच्छइत्ता अट्टणसालं अणुपविसइ।
भावार्थ - तब भंभसारपुत्र कोणिक राजा 'बलव्यापृत' से यह बात सुनकर, अवधारण करके, हृष्ट-तुष्ट यावत् विकसित हृदय हुआ और जहाँ व्यायामशाला-अट्टणशाला थी वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अणुपविसित्ता अणेगवायामजोग्गवग्गणवामहणमल्ल जुद्धकरणेहिं संते परिस्संते।
भावार्थ - वहाँ व्यायाम के लिये अनेक योग्य वल्गन-उछलना-कूदना, व्यामर्दन-परस्पर के अंगों को मोडना, मल्लयुद्ध और करण-मल्लशास्त्र में प्रसिद्ध अंगभंग विशेष के द्वारा थके-श्रान्त, शिथिल - परिश्रान्त हुए।
विवेचन - इस सूत्र में व्यायाम के लिये की गई पांच प्रकार की चेष्टाओं का वर्णन है। टीका से इन प्रकारों के विषय में विशेष प्रकाश नहीं मिलता। 'योग्या' का पर्यायवाची शब्द 'गुणनिका' मात्र दिया गया है। जिससे विशेष स्पष्ट आशय समझ में नहीं आता। प्रसंगवशात् यह अनुमान होता है कि - 'ऐसी चेष्टाएँ, जिसमें अंगों के खिंचाव और शिथिलीकरण की क्रियाएँ मुख्य हो या आकुञ्चन-प्रसारण
के योग से किये जाने वाले व्यायाम।' ऐसा आशय हो। .. सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाइएहिं पीणणिजेहिं दप्पणिजेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विदियगायपल्हायणिजेहिं अभिगेहिं अभिगए समाणे; __. भावार्थ - फिर रस रुधिर आदि धातुओं के समताकारी- प्रीणनीय, बलकारी-दर्पणीय, कामोत्तेजकमदनीय, मांसवर्द्धक-बृंहणीय और सभी इन्द्रियों एवं सम्पूर्ण शरीर के लिये आनंदकारी प्रह्लादनीय शतपाक-सहस्रपाक नामक सुगंधित तेल आदि अभ्यंगों- मालिस के साधनों के द्वारा मर्दन कराने के बाद
विवेचन- इस सूत्र में औषधिपक्वादि विषयों को ग्रहण करके संक्षेप में अभ्यंगशास्त्र का सार रख दिया है। 'सुगंध......' इस सूत्र में आये हुए आदि शब्द से घृतकर्पूरपानीय आदि ग्रहण करना चाहिए।
तेल्लचम्मंसि पडिपुण्णपाणिपायसुकुमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तटेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं णिउणसिप्पोवगएहिं अभिगणपरिमहणुव्व
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