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उववाइय सुत्त
तणं से बलवाए णयरगुत्तिए आमंते । आमंतेत्ता एवं वयासी- 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चंपं णयरिं सब्भितरबाहिरियं आसित्त जाव कारवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।'
भावार्थ - तब सेनानायक ने नगरपाल - नगरगुप्तिक-नागरिक स्वच्छता के तंत्र संचालक या नगर रक्षक को बुलाया और इस प्रकार कहा- 'जल्दी ही हे देवानुप्रिय ! चम्पानगरी को बाहर और भीतर से स्वच्छ, जलसिञ्चित कराओ यावत् ऐसा करवा कर मुझे आज्ञापालन की सूचना दो।
तणं णयरगुन्तिए बलवाउयस्स एयमट्टं आणाए विणएणं पडिसुणेइ | पडिसुणित्ता चंपं णयरिं सब्धितरबाहिरियं आसित्त जाव कारवेत्ता जेणेव बलवाडए तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चष्पिणइ ।
भावार्थ - तब नगरपाल ने 'बलवाउय' -सेनानायक की इस आशय की आज्ञा विनय से सुनी। वह चम्पानगरी को भीतर और बाहर से सिञ्चित, स्वच्छ आदि करवा कर सेनानायक के पास आया और आज्ञा पालन की सूचना दी।
तए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ । हयगय जाव सण्णाहियं पासइ । सुभद्दापमुहाणं देवीणं पडिजाणाई उवट्ठवियाइं पासइ । चंपं णयरिं सब्भितर जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ ।
भावार्थ - इसके बाद सेना नायक ने भंभसारपुत्र कोणिक राजा के अभिषेक्य हस्तिरत्न को सजा हुआ देखा। घोड़े, हाथी आदि सेना को सजी हुई देखी । सुभद्रा आदि देवियों के जुते हुए यान देखें और बाहर-भीतर से स्वच्छ यावत् सुगन्धित से महकती हुई चम्पानगरी को देखी ।
पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए पीयमणे जाव हियए जेणेव कोणिए राया भंभसारपुत्ते, तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी ।
भावार्थ - देखकर, वह हृष्ट-तुष्ट चित्तवाला, आनंदित, प्रीतियुक्त मन वाला यावत् विकसित हृदय वाला हुआ और जहाँ भंभसारपुत्र कोणिक राजा था वहाँ उसके पास आया। फिर हाथ जोड़कर यावत् इस प्रकार बोला
कप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसेक्के हत्थिरयणे, हयगयरहपवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया सुभद्दापमुहाणं च देवीणं बाहिरियाए य उवद्वाणसालाए पाडिएक्कपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई उवट्ठावियाई, चंपा णयरी सब्धि - तरबाहिरिया आसित्त जाव गंधवट्टिभूया कया । तं णिज्जंतु णं देवाप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवंदउं ।
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