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________________ - अभिवन्दना की तैयारी १०७ भावार्थ - यों उसने विनय सहित आज्ञा के वचन सुने, सुनकर, 'हत्थिवाउय' - हस्तिव्याप्तमहावत को बुलाया। आमंतेत्ता एवं वयासी - "खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि। भावार्थ - उसने महावत को बुलाकर, इस प्रकार कहा-'जल्दी ही हे देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र कोणिक राजा के आभिषेक्य-विधि सहित प्रमुख बनाये गये हस्तिरत्न को सजाकर, तैयार करो। हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेहि। सण्णाहित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। भावार्थ - और हाथी, घोड़े, रथ एवं श्रेष्ठ योद्धाओं से बनी चार अंगवाली सेना को तैयार करो। ऐसा करके, फिर मुझे आज्ञापालन की सूचना दो। तएणंसेहत्थिवाउए बलवाउस्स एयमढेसोच्चा,आणाएविणएणंवयणंपडिसुणेइ। भावार्थ - तब महावत ने सेनानायक की यह बात सुनकर, आज्ञा के वचन विनय सहित स्वीकार किये। पडिसुणित्ता छेयायरियउवएसमइविकप्पणा-विकप्पेहिं सुणिउणेहिं उजलणेवत्थहत्थपरिवत्थियं। भावार्थ - फिर निपुण छेकाचार्य-शिल्पाचार्य के उपदेश से मंजी हुई बुद्धि और कल्पना के विकल्पों-विविध विचारों से युक्त उस अति चतुर-महावत ने उस हस्ति रत्न को उज्ज्वल नेपथ्यसाजशृंगार, वेशभूषा से शीघ्र ही ढंक दिया। · · सुसजं धम्मियसण्णद्धबद्धकवइयउप्पीलिय-कच्छवच्छ गेवेयबद्धगलवरभूसणविरायंतं अहिय-तेअजुत्तं। भावार्थ - उस हाथी को सुन्दर ढंग से सजाया। धार्मिकों से वह सन्नद्ध-कवच से युक्त-तैयार, बद्धकवच से बंधा हुआ और कवच से युक्त किया गया अथवा धर्मित-कवच के पहनने योग्य हिस्से पहनाये गये, सन्नद्ध-कवच के जोड़ने योग्य भागों को जोड़कर पहनाये गये और बद्ध (बान्धने योग्य कवच के भाग कसे गये) कवचत्राला उसे बनाया। बांधने की रस्सी-कक्षा को वक्षस्थल पर कसी। गले में मालाएं बांधी और अन्य श्रेष्ठ आभूषणों से उसकी शोभा बढ़ाई। अत: वह अत्यन्त तेजस्वी दिखने लगा। 'सललिअवरकण्णपूरविराइयं पलंबउच्चूल-महुयरकयंधयारंचित्तपरिच्छेय-पच्छ्यं। भावार्थ - सूक्ष्म कलामय सुन्दर कर्णपूरों-कान के आभूषणों से उसे सुशोभित किया। कान के पास लटकाये हुए लम्बे झूमकों से और मदजल से आकर्षित बने हुए भ्रमरों से हस्ति के लिए अन्धकार-सा हो गया था। उस पर सुन्दर छोटा प्रच्छद-झूल डाला गया। अजुत्ता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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