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________________ देवों का शरीर और शृङ्गार विवेचन - 'जे य गहा...' इस सूत्र में 'य' पद से बृहस्पति आदि नवग्रहों के सिवाय अन्य ग्रहों को ग्रहण किया गया है। क्योंकि मनुष्य लोक में और मनुष्य लोक के बाहर एक एक चन्द्र सूर्य रूप युगल के ८८-८८ ग्रह होते हैं। केऊ य गइरइया। अट्ठावीसविहा य णक्खत्त-देवगणा। णाणासंठाण-संठियाओ पंचवण्णाओ ताराओ। ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम-मंडल गई। पत्तेयं णामंकपागडिय-चिंध-मउडा। महिड्डिया जाव पजुवासंति। भावार्थ - गतिशील केतु अथवा नाना प्रकार वाले अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण और पांचों वर्ण के तारा जाति के देव सेवा में आये। उनमें स्थित-गति रहित रह कर प्रकाश करने वाले और निरन्तर-अविश्राम मण्डलाकार गति से चलने वाले दोनों तरह के ज्योतिष्क देव थे। प्रत्येक ने स्वनामाङ्कित विमान के चिह्न से मुकुट धारण किये थे। वे महर्द्धिक थे.... यावत् पर्युपासना करने लगे। विवेचन - 'धूमकेतु' के अतिरिक्त जलकेतु' आदि केतुओं का 'केऊ य गइरइया' पदों के द्वारा उल्लेख किया गया है। 'गइरइया' (गति में आनन्दानुभव करने वाले) विशेषण लोक की अपेक्षा से दिया गया है। नक्षत्रों के लिये 'देवगण' विशेषण प्रयोग हुआ है। क्योंकि कई नक्षत्र अनेक ताराओं के समूह के रूप में हैं। अत: वे नाना संस्थान वाले हैं। यह बात पन्नवणा के दूसरे स्थानपद से भी स्पष्ट होती है। वैमानिक देवों का वर्णन ... २६-तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वेमाणिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था। सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिद-बंभ-लंतक-महासुक्कसहस्साराणय-पाणयारण-अच्चुपवईपहिट्ठादेवा।जिण-दंसणुस्सगागमण-जणियहासा। • भावार्थ. - उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार आणत, प्राणत, आरण और अच्युत देव लोकों के पति इन्द्र आये। वे सब देव अत्यन्त प्रसन्न थे। वे जिन-रागद्वेष विजेता तीर्थङ्कर भगवान् के दर्शन पाने को उत्सुक और आगमन से उत्पन्न हुए हर्ष से युक्त थे। पालक-पुप्फक-सोमणस-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगम-पीइगम-मणोगमविमल-सव्वओभह-णामधिजेहिं विमाणेहिं ओइण्णा वंदका जिणिंदं। - भावार्थ - वे जिनेन्द्र के वन्दक-वन्दना करने वाले देव १. पालक २. पुष्पक ३. सौमनस ४. श्रीवत्स ५. नन्द्यावर्त ६. कामगम ७. प्रीतिगम ८. मनोगम ९. विमल और १०. सर्वतोभद्र नाम के विमानों द्वारा स्वर्ग से उतरकर इस तिरछा लोक की पृथ्वी पर आये। विवेचन - बारह देवलोक के दस इन्द्र माने गये हैं। पालक आदि जो दस विमानों के नाम ऊपर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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