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________________ ९८ उववाइय सुत्त सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-सुरइय-पलंब-सोहंत-कंत-वियसंत-चित्त-वणमाल-रइयवच्छा कामगमी कामरूवधारी। भावार्थ - वे वनमाला, फूलों का सेहरा-आमेलक, मुकुट, कुण्डल, अपनी इच्छा के अनुसार विकुक्ति -विविध रूप बनाने की शक्ति से निर्मित, अलंकार और सुन्दर आभूषणों को पहने हुए थे। सभी ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले सुगन्धित फूलों से सुन्दर ढंग से बनी हुई लम्बी मालाओं और शोभित, कान्त, विकसित एवं विचित्र वनमालाओं से उनके वक्षस्थल सुशोभित थे। वे इच्छागामी- जहां जाने का हो, वहां जाने की इच्छा करते ही उस स्थान पर पहुँच जाने वाले या इच्छित स्थान पर जाने वाले और काम रूपधारी-इच्छा होते ही रूप को पलटने की शक्तिवाले या इच्छित रूप के धारक थे। ___णाणाविह-वण्ण-राग-वर-वत्थ-चित्त-चिल्लिय-णियंसणाविविह-देसी-णेवत्थग्गहिय-वेसा। भावार्थ - वे नाना भाँति के वर्ण-रंगवाले, श्रेष्ठ वस्त्र और विविध भड़कीले परिधान-पहनावा के धारक थे। विविध देशारूढ़ वेश-भूषाएँ, उन्होंने ग्रहण कर रखी थी। .. पमुइय-कंदप्प-कलह-केलि-कोलाहल-प्पिया हास-बोल (केलि) बहुला। भावार्थ - वे प्रमुदित कन्दर्प-काम प्रधान क्रीड़ा, कलह राटी-रार, केलि-क्रीड़ा और कोलाहल में प्रीति रखने वाले थे। वे बहुत हँसने वाले और अधिक बोलने वाले थे। अणेग-मणि-रयण-विविह-णिजुत्त-विचित्त-चिंधगया सुरूवा महिड्डिया जाव पन्जुवासंति। भावार्थ - उन वाणव्यन्तर देवों के अनेक मणि-रत्नमय नियुक्त विविध एवं विचित्र चिह्न थे। वे सुरूप, महर्द्धिक थे-यावत् पर्युपासना करने लगे। विवेचन - पिशाच जाति के देवों के मुकुट के चिह्न कदम्बध्वज, भूत जाति के सुलस और यक्ष जाति के वट (बड़), राक्षस जाति के खट्वांग (मांचा), किन्नर जाति के अशोक वृक्ष, किंपुरुष जाति के चम्पक वृक्ष, महाकाल जाति के नाग और गन्धर्व जाति के तुम्बरी (फलविशेष) के चिह्न होते हैं। ज्योतिषी देवों का वर्णन २५-तेणं कालेणं तेणंसमएणंसमणस्स भगवओ महावीरस्स जोइसिया देवा अंतियंपाउभवित्था, विहस्सईचंदसूरसुक्क सणिच्चरा राहूधूमकेऊ बुहाय अंगारका य तत्त तवणिज-कणग-वण्णा जे गहा जोइसंमि चारं चरंति। भावार्थ - उस काल और उस समय में भगवान् महावीर स्वामी के समीप ज्योतिष्क देव प्रकट हुए। यथा-बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनिश्चर, राहू, धूमकेतु, बुद्ध और अंगारक-मंगल-जो कि तपे हुए स्वर्णबिन्दु के समान वर्ण वाले हैं-एवं वे ग्रह, जो ज्योतिष्चक्र में भ्रमण करते हैं वे भगवान् महावीर स्वामी के सेवा में आये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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