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' अध्ययन १
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इस प्रकार वे इस लोक से भी भ्रष्ट हो जाते हैं और परलोक से भी भ्रष्ट हो जाते हैं। वे संसार समुद्र को पार नहीं कर सकते हैं। अध बीच में ही काम-भोगों के कीचड़ में फंस जाते हैं। अतः श्वेत कमल के समान निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। ___ इस प्रकार जब वे संसार सागर से अपनी आत्मा का उद्धार नहीं कर सकते हैं, तो दूसरों का तो कर ही कैसे सकते हैं। अर्थात् नहीं कर सकते हैं ।। १० ॥
अहावरे तच्चे पुरिस-जाए ईसर-कारणिए त्ति आहिज्जइ। . इह खलु पाईणं वा ६ संतेगइया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोयं उववण्णा । तं जहा-आरिया वेगे जाव तेसिं च णं महंते एगे राया भवइ जाव सेणावइ-पुत्ता।
तेसिं च णं एगइए सड्डी भवइ कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए, जाव जहा मए एस धम्मे सुअक्खाए सुपण्णत्ते भवइ ।
इह खलु धम्मा पुरिसादिया, पुरिसोत्तरिया, पुरिसप्पणीया, पुरिस-संभूया, पुरिसपज्जोइया, पुरिस-मभिसमण्णागया, पुरिस-मेव अभिभूय चिट्ठति । से जहा णामए गंडे सिया, सरीरे जाए, सरीरे संवड़े, सरीरे अभिसमण्णागए, सरीरमेव अभिभूय चिट्ठइ; एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति। से जहा णामए अरई सिया, सरीरे जाया, सरीरे संवुड्डा, सरीरे अभिसमण्णागया, सरीर-मेव अभिभूय चिट्ठइ एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए वम्मिए सिया, पुढवी-जाए, पुढवी-संवुड्डे, पुढवी-अभिसमण्णागए पुढवीमेव अभिभूय चिट्ठइ; एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति। से जहा णामए रुक्खे सिया पुढवीजाए, पुढवी-संवुड़े, पुढवी-अभिसमण्णागए पुढवीमेव अभिभूय चिट्ठइ एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति । से जहा णामए पुक्खरिणी सिया पुढवीजाया जाव पुढवी-मेव अभिभूय चिट्ठइ एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहा णामए उदग-पुक्खले सिया, उदग-जाए जाव उदगमेव अभिभूय चिट्ठइ; एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिटुंति । से जहा णामए उदगबुब्बुए सिया उदगजाए जाव उदग-मेव अभिभूय चिट्ठइ; एव-मेव धम्मा वि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति।
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