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________________ श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २ जं पि य इमं समणाणं णिग्गंथाणं उदिटुं पणीयं वियंजियं दुवालसंगं गणिपिडगं, तंजहा____ आयारो, सूयगडो जाव दिहिवाओ, सव्वमेयं मिच्छा, ण एयं तहियं, ण एवं आहा-तहियं । इमं सच्चं, इमं तहियं, इमं आहातहियं । ते एवं सण्णं कुव्वंति, ते एवं सण्णं संठवेंति, ते एवं सणं सोवट्ठ-वयंति; तमेव ते तज्जाइयं दुक्खं गाइउदृति, सउणी पंजरं जहा। ते णो एवं विपडिवेदेति तं जहा-किरिया इवा, जाव अणिरए इवा; एवमेव ते विलव-स्वेहि कम्म-समारंभेहिं विरूव-रूवाई काम-भोगाई समारभंति भोयणाए । एवमेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा एवं सहहमाणा जाव इति ते णो हव्वाए, णो पाराए, अंतरा काम भोगेसु विसण्णे त्ति । तच्चे पुरिसजाए ईसर-कारणिए त्ति आहिए।॥११॥ कठिन शब्दार्थ-ईसरकारणिए - ईश्वर कारणिक, पुरिसादिया - पुरुषादिक-पुरुष (ईश्वर) कारण है, पुरिसोत्तरिया- पुरुषोत्तरा-ईश्वर कार्य है, पुरिसप्पणीया - पुरुष प्रणीत-ईश्वर द्वारा रचित, पुरिससंभूया- पुरुषसम्भूत-ईश्वर से उत्पन, पुरिसपजोइया - पुरुष प्रधोतित-ईश्वर से प्रकाशित,... पुरिसमभिस-मण्णागया- पुरुष अभिसमन्वागत-ईश्वर के अनुगामी, अभिभूय - व्याप्त गंडे - गंड . (फोड़ा) अई- अरति, वम्मिए - वल्मीक, उदग पुक्खले - उदग पुष्कर, उदग बुब्छुए - पानी का बुबुद्, उहिटुं- उद्दिष्ट-कहा हुआ, पणीयं - प्रणीत (बनाया हुआ), वियंजियं - व्यंजित (प्रकट किया हुआ) गणिपिडगं - गणिपिटक, तहियं - तथ्य, आहातहियं - यथा तथ्य-यथार्थ, सण्णं - संज्ञा (मत), संठवेति - शिक्षा देते हैं, सोवट्ठवयंति- स्थापना करते हैं, सउणी- शकुनी-पक्षी, पंजरं-पिंजरे को, णाइटुंति - तोड़ नहीं सकते हैं। भावार्थ - अब तीसरे पुरुष का वर्णन किया जाता है । यह तीसरा पुरुष, चेतन और अचेतन : स्वरूप इस समस्त संसार का कर्ता ईश्वर नामक एक पदार्थ मानता है। इसका कहना यह है कि जो पदार्थ किसी विशेष अवयव रचना से युक्त होता है वह किसी बुद्धिमान् कर्ता के द्वारा बनाया हुआ होता है। जैसे घट (घड़ा) विशेष अवयव रचना से युक्त होता है इसलिये वह कुम्हार के द्वारा बनाया हुआ होता है तथा पट (कपड़ा) भी जुलाहे (बुनकर) के द्वारा बनाया हुआ होता है। इसी तरह प्राणियों का शरीर तथा यह समस्त भुवन (संसार), विशेष अवयव रचना से युक्त है अतः यह भी किसी बुद्धिमान् कर्ता के द्वारा बनाया हुआ है। जिस बुद्धिमान् कर्ता ने इनको उत्पन्न किया है वह हम लोगों के समान अल्पशक्ति तथा अल्पज्ञ नहीं हो सकता है किन्तु वह सर्वशक्तिमान् तथा सर्वज्ञ पुरुष है वह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004189
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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