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अध्ययन ७
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भावार्थ - उदक पेढाल पुत्र ने भगवान् गौतम स्वामी से पूछा कि - हे भगवन् गौतम ! आप किन प्राणियों को त्रस कहते हैं ? भगवान् गौतम ने वाद के सहित उदक से कहा कि जिन्हें तुम त्रसभूत कहते हो उन्हीं को हम त्रस कहते हैं और हम जिन्हें त्रस प्राणी कहते हैं उनको तुम त्रसभूत कहते हो। इन दोनों शब्दों के अर्थ में कोई भेद नहीं है ये दोनों शब्द एकार्थक हैं । जो प्राणी वर्तमान काल में त्रस हैं उन्हीं का वाचक जैसे त्रसभूत पद है उसी तरह त्रस पद भी है तथा जो प्राणी भूतकाल में त्रस थे और जो भविष्य में त्रस होने वाले हैं उनका वाचक जैसे त्रसभूत पद नहीं है उसी तरह त्रस पद भी नहीं है ऐसी दशा में तुम लोग त्रसभूत शब्द का प्रयोग करना ठीक समझते हो और उस का प्रयोग करना ठीक नहीं समझते इसका क्या कारण है ? तथा ये दोनों ही शब्द जब कि समान अर्थ के बोधक हैं तब क्या कारण है तुम एक की प्रशंसा और दूसरे की निन्दा करते हो ? अतः तुम्हारा यह भेद न्याय सङ्गत नहीं है ।
- यह कह कर भगवान् गौतम स्वामी ने कहा कि- हे उदक ! साधु समस्त प्राणियों की हिंसा से स्वयं निवृत्त होकर यही चाहता है कि कोई भी मनुष्य किसी भी प्राणी का घात न करे परन्तु उसके निकट कितने ऐसे लोग भी आते हैं जो समस्त प्राणियों की घात को छोड़ नहीं सकते हैं वे कहते हैं कि हे साधो! मैं समस्त प्राणियों की हिंसा को त्याग कर साधुपना पालन करने के लिये अभी समर्थ नही हूँ किन्तु क्रमशः प्राणियों की हिंसा का त्याग करना चाहता हूँ इसलिये गृहस्थ अवस्था में रहते हुए जितना त्याग मेरे से हो सकता है उतना ही त्याग करना चाहता हूँ। यह सुनकर साधु विचार करता है कि यह सभी प्राणियों की हिंसा से निवृत्त नहीं हो सकता है तो जितने से निवृत्त हो उतना ही सही इसलिये वह उसको त्रस प्राणियों के न मारने की प्रतिज्ञा कराता है और इस प्रकार त्रस प्राणियों के पात से निवृत्ति की प्रतिज्ञा करना भी उस पुरुष के लिये अच्छा ही होता है क्योंकि जहां सब का घात वह करता था वहां कुछ तो छोड़ता ही है। इस प्रकार उस पुरुष को त्याग कराने वाले साधु को शेष प्राणियों के मारने का अनुमोदन नहीं होता है क्योंकि-वह तो सभी के पात का त्याग कराना चाहता है परन्तु जब वह पुरुष ऐसा करने के लिये समर्थ नहीं है तो जितने को वह छोड़े उतने तो बचेंगे यह आशय साधु का होता है अतः उसको शेष प्राणियों के घात का अनुमोदन नहीं लगता है ।।७५॥
तसा वि वुच्चंति तसा तससंभारकडेणं कम्मणा णामं च णं अब्भुवगयं भवइ, तसाउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, तसकायट्ठिझ्या ते नओ आउयं विप्पजहंति, ते तओ आउयं विप्पजहिता थावरत्ताए पच्चायंति, थावरा वि वुच्चंति थावरा, चावरसंभारकडेणं कम्मणा णामं च णं अब्भुवगयं भवड़, थावराउयं च णं पलिक्खीणं भवइ, थावरकायट्ठिाया ते तओ आउयं विप्पजहंति। तओ आउयं
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