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अध्ययन ५
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कारण उदार पुद्गल है और कार्मण शरीर के कारण कर्म हैं तथा तैजस शरीर के कारण तेज है इसलिये कारण भेद होने से इनमें एकान्त अभेद सम्भव नहीं है। इसी तरह इनमें एकान्त भेद भी सम्भव नहीं है क्योंकि ये सब के सब एक ही काल और एक ही देश में उपलब्ध होते हैं घर दारादि की तरह भिन्नभिन्न देश और काल में उपलब्ध नहीं होते हैं। अतः इन दोनों बातों को देखते हुए इनके विषय में यही कहना चाहिये कि-इन शरीरों में कथञ्चित भेद और कथञ्चित अभेद है। ___ सांख्यवादी कहते हैं कि-"जगत् में जितने पदार्थ हैं सभी प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं इसलिये प्रकृति ही समस्त पदार्थों का कारण है। वह प्रकृति एक ही है इसलिये सभी पदार्थ सर्वात्मक है और सब पदार्थों में सब की शक्ति विद्यमान हैं" परन्तु विवेकी पुरुष को ऐसा नहीं कहना चाहिये। सभी पदार्थ अपने-अपने स्वभाव में ही स्थित हैं तथा उनकी शक्ति भी परस्पर विलक्षण है इसलिये सब पदार्थों में सब की शक्ति नहीं है यह भी नहीं कहना चाहिये।
यहां, इन दोनों एकान्तमय वचनों के कथन का निषेध इसलिये किया जाता है कि-ये दोनों ही बातें व्यवहार से विरुद्ध है, पदार्थों की परस्पर भिन्न भिन्न शक्ति प्रत्यक्ष अनुभव की जाती है एवं सुख, दुःख, जीवन, मरण, दूरता, निकटता, सुरूपता और कुरूपता आदि विचित्रता भी पृथक्-पृथक् देखने में आती है । तथा कोई पापी है तो कोई पुण्यात्मा है, कोई पुण्य का फल भोगता है तो कोई पाप का फल भोगता है। इसलिये सभी पदार्थों को सब स्वरूप और सभी में सब की शक्ति का सद्भाव नहीं माना जा संकता है। सांख्यवादी स्वयं सत्त्व रज और तम को भिन्न-भिन्न मानते हैं, एक स्वरूप नहीं मानते हैं परन्तु सभी यदि सर्वात्मक हैं तो सत्त्व, रज और तम भी परस्पर अभिन्न ही होने चाहिये । परन्तु सांख्यवादी ऐसा नहीं मानते हैं इसलिये दूसरे पदार्थों के विषय में भी सांख्यवादियों को ऐसा ही मानना चाहिये, सब को सर्वात्मक मानना ठीक नहीं है । इसी प्रकार सभी पदार्थ सत्त्व, रज और तम रूप प्रकृति के कार्य हैं यह सिद्धान्त भी अप्रमाणिक है क्योंकि इसका साधक कोई प्रबल युक्ति सांख्यवादी के पास नहीं है तथा सांख्यवादी उत्पत्ति से पहले जो कार्य की कारण में सर्वथा सत्ता मानते हैं वह भी ठीक नहीं है क्योंकि पिण्डावस्था में घट के कार्य और गुण नहीं पाये जाते हैं तथा सर्वथा विद्यमान कार्य की कारण से उत्पत्ति भी नहीं हो सकती है क्योंकि सर्वथा विद्यमान घट की उत्पत्ति नहीं होती है अतः कारण में कार्य का सर्वथा सद्भाव मानना भी अयुक्त है। कारण में कार्य का सर्वथा अभाव मानना भी ठीक नहीं हैं क्योंकि ऐसा मानने पर जैसे मृत् (मिट्टी) पिण्ड से घट होता है इसी तरह व्योमारविन्द (आकाश का कमल) भी होना चाहिये। अतः कारण में कार्य का सर्वथा अभाव मानना भी ठीक नहीं है। वस्तुतः सभी पदार्थ सत्ता रखते हैं, सभी ज्ञेय हैं सभी प्रमेय हैं इसलिये सत्ता ज्ञेयत्व
और प्रमेयत्व रूप सामान्य धर्म की दृष्टि से सभी पदार्थ कथञ्चित् एक भी हैं और सबके कार्य्य, गुण, स्वभाव और नाम आदि भिन्न-भिन्न हैं इसलिये सभी पदार्थ परस्पर कथंचित् भिन्न भी है। एवं उत्पत्ति से पूर्व कारण में कार्य की कथञ्चित सत्ता भी है और कथञ्चित् नहीं भी है। कारण में कार्य की कथञ्चित्
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