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अध्ययन ३
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'पुढवी या सक्करा वालुया य उवले सिला य लोणूसे। अय तउय तंब सीसग रुप्प सुवण्णे य वइरे य ॥१॥.. हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले । . . अब्भपडलब्भवालय बायरकाए मणिविहाणा ॥२॥ गोमेग्जए य रुयए अंके फलिहे य लोहियक्खे य। मरगयमसारंगल्ले भुयमोयगइंदणीले य ॥३॥ चंदणगेरुय हंसगब्भपुलएसोगंधिए य बोद्धव्वे । चंदप्पभवेरुलिए जलकंते सूरकंते य ॥४॥ .
एयाओ एएसु भाणियव्वाओ गाहाओ जाव सूरकंतत्ताए विउटुंति, ते जीवा तेसिं णाणाविहाणं तसथावराणं पाणाणं सिणेहमाहारेंति, ते जीवा आहारेंति पुरविसरीरं जाव संतं, अवरेऽवि य णं तेसिं तसथावरजोणियाणं पुढवीणं जाव सूरकंताणं सरीरा णाणावण्णा जावमक्खायं, सेसा तिण्णि आलावगा जहा उदगाणं ॥११॥
- कठिन शब्दार्थ - अणुगंतव्याओ - जानना चाहिये, उवले- उपल-पत्थर, लोणुसे - नमक, तउयरांगा, तंब - तांबा, सीसग - सीसा, वइरे - वज्र, हरियाले - हरिताल, हिंगुलए - हिंगलू, मणोसिलामैनाशिल, सासगंजणपवाले - शासक, अंजन, प्रवाल, अब्भपडलब्भवालय - अभ्रपटल, अभ्रवालुका, गोमेजए - गोमेधक रत्न, फलिहे - स्फटिक, मरगयमसार गल्ले - मरकत मस्सारगल्ल, चंदप्पभ वेरुलिए - चन्द्रप्रभ वैडूर्य, जलकंते - जलकांत, सूरकते - सूर्यकांत ।
भावार्थ - अपने पूर्वकृत कर्म के उदय से कितनेक जीव, त्रस और स्थावर प्राणियों के सचित्त और अचित्त शरीरों में पृथिवी रूप में और हाथी के दांतों में मुक्तारूप में, स्थावर प्राणी बाँस आदि में मुक्ताफल रूप में एवं अचित्त पत्थर आदि में नमक रूप में तथा नाना प्रकार की पृथिवी में शर्करा वालुका और लवण आदि के रूप में उत्पन्न होते हैं एवं वे गोमेधक आदि रत्नों के रूप में उत्पन्न होते हैं यह जानना चाहिये ।। ६१॥ ..
विवेचन-वनस्पतिकाय को छोड़कर शेष चार स्थावर जीवों की उत्पत्ति, स्थिति, समृद्धि एवं आहार आदि की प्रक्रिया का निरूपण किया गया है। अप्काय के चार आलापक इस प्रकार हैं. १. वायुयोनिक अप्काय - मेंढक आदि त्रस तथा नमक हरित आदि स्थावर प्राणियों के सचित्त और अचित्त नानाविध शरीरों में वायुयोनिक अप्काय के रूप में जन्म धारण करते हैं। इनकी स्थिति, समृद्धि और प्रथम आहार ग्रहण का आधार वायुकाय है।
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