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श्री स्थानांग सूत्र
करके पप्फोडेमाणे - झड़कवाते हुए, पमजेमाणे, - प्रर्माजना करवाते हुए, विगिंचमाणे - त्याग करते हुए-परठते हुए, विसोहेमाणे - शोधन-साफ करते हुए, एगागी - एकाकी-अकेले । ....
भावार्थ - गच्छ में आचार्य उपाध्याय के पांच अतिशेष यानी अतिशय कहे गये हैं यथा - जब आचार्य उपाध्याय बाहर से पधारे तब उपाश्रय के अन्दर अपने पैरों को दूसरों पर धूलि न उड़े इस तरह करके दूसरे साधु से झड़कवाते हुए तथा प्रमार्जना करवाते हुए आचार्य उपाध्याय भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । आचार्य उपाध्याय उपाश्रय के अन्दर ही मलमूत्र को परठते हुए अथवा पैर आदि में लगी हुई अशुचि को साफ करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । आचार्य उपाध्याय की इच्छा हो तो वे वेयावच्च करें, इच्छा न हो तो न करें, ऐसा करते हुए वे भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । ज्ञान ध्यान की सिद्धि के लिए उपाश्रय के अन्दर एक रात अथवा दो रात अकेले रहते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । आचार्य उपाध्याय ज्ञान ध्यानादि की सिद्धि के लिए एक रात अथवा दो रात तक उपाश्रय के बाहर रहते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं।
विवेचन - गच्छ में वर्तमान आचार्य, उपाध्याय के अन्य साधुओं की अपेक्षा पांच अतिशय अधिक होते हैं -
१. उत्सर्ग रूप से सभी साधु जब बाहर से आते हैं तो स्थानक में प्रवेश करने के पहिले बाहर ही पैरों को पूंजते हैं और झाटकते हैं। उत्सर्ग से आचार्य, उपाध्याय भी उपाश्रय से बाहर ही खड़े रहते हैं और दूसरे साधु उनके पैरों का प्रमार्जन और प्रस्फोटन करते हैं अर्थात् धूलि दूर करते हैं और पूंजते हैं। ___ परन्तु इसके लिये बाहर ठहरना पड़े तो दूसरे साधुओं की तरह आचार्य, उपाध्याय बाहर न ठहरते . हुए उपाश्रय के अन्दर ही आ जाते हैं और अन्दर ही दूसरे साधुओं से धूलि न ठड़े, इस प्रकार प्रमार्जन और प्रस्फोटन कराते हैं; यानी पुंजवाते हैं और धूलि दूर करवाते हैं। ऐसा करते हुए भी वे साधु के आचार का अतिक्रमण नहीं करते।
२. आचार्य, उपाध्याय उपाश्रय में लघुनीत बड़ीनीत परठाते हुए या पैर आदि में लगी हुई अशुचि को हटाते हुए साधु के आचार का अतिक्रमण नहीं करते। ___३. आचार्य, उपाध्याय इच्छा हो तो दूसरे साधुओं की वैयावृत्य करते हैं, इच्छा न हो तो नहीं भी
करते हैं। . ४. आचार्य, उपाध्याय उपाश्रय में एक या दो रात तक अकेले रहते हुए भी साधु के आचार का अतिक्रमण नहीं करते।
५. आचार्य, उपाध्याय उपाश्रय से बाहर एक या दो रात तक अकेले रहते हुए भी साधु के आचार' का अतिक्रमण नहीं करते।
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