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स्थान ५ उद्देशक २
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प्राप्त हुई उपसर्ग यानी कष्ट में पड़ी हुई, साधिकरण यानी क्लेश युक्त एवं लड़ाई करके आई हुई, प्रायश्चित्त वाली यावत् आहार पानी का त्याग की हुई अथवा किसी पुरुष के द्वारा संयम से विचलत की जाती हुई साध्वी को पकड़ता हुआ अथवा सहारा देता हुआ साधु भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है ।
विवेचन - पाँच बोलों से साधु साध्वी को ग्रहण करने अथवा सहारा देने के लिये उसका स्पर्श करे तो भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता ।
१. कोई मस्त सांड आदि पशु या गीध आदि पक्षी साध्वी को मारते हों तो साधु, साध्वी को बचाने के लिए उसका स्पर्श कर सकता है।
२. दुर्ग से अथवा विषम स्थानों पर फिसलती हुई या गिरती हुई साध्वी को बचाने के लिये साधु उसका स्पर्श कर सकता है।
३. कीचड़ या दलदल में फँसी हुई अथवा पानी में बहती हुई साध्वी को साधु निकाल सकता है। ४. नाव पर चढ़ती हुई या उतरती हुई साध्वी को साधु सहारा दे सकता है।
५. यदि कोई साध्वी राग, भय या अपमान से शून्य चित्त वाली हो, सन्मान से हर्षोन्मत्त हो, यक्षाधिष्टित हो, उन्माद वाली हो, उसके ऊपर उपसर्ग आये हों, यदि वह कलह करके खमाने के लिये आती हो, परन्तु पछतावे और भय के मारे शिथिल हो, प्रायश्चित्त वाली हो, संथारा की हुई हो, दुष्ट . पुरुष अथवा चोर आदि द्वारा संयम से डिगाई जाती हो, ऐसी साध्वी की रक्षा के लिये साधु उसका स्पर्श कर सकता है।
निद्रा से जागने के पाँच कारण १. शब्द २. स्पर्श ३. क्षुधा ४. निद्रा क्षय ५. स्वप्न दर्शन । इन पांच कारणों से सोये हुए जीव की निद्रा भङ्ग हो जाती है और वह शीघ्र जग जाता है।
आचार्य उपाध्याय के अतिशय
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आयरियउवज्झायस्स णं गणंसि पंच अइसेसा पण्णत्ता तंजहा - आयरियउवज्झाए .. अंतो उवस्सगस्स पाए णिगिज्झिय णिगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा णाइक्कमइ । आयरियउवज्झाए अंतो उवस्सगस्स उच्चारपासवणं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा णाइक्कमइ । आयरियउवज्झाए इच्छा वेयावडियं करेज्जा इच्छा णो करेजा । आयरियठवज्झाए अंतो उवस्सगस्स एगरायं वा दुरायं वा एगागी वसमाणे . इक्कमइ । आयरियउवज्झाए बाहिं उवस्सगस्स एगरायं वा दुरायं वा वसमाणे णाइक्कमइ ॥ २७ ॥
कठिन शब्दार्थ - अइसेसा - अतिशय, णिगिज्झिय निगृह्य-दूसरों पर धूल न उड़े, इस तरह
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