________________
७०
श्री स्थानांग सूत्र
पक्खीजाइए वा ओहाएजा तत्थ णिग्गंथे णिग्गंथिं गिण्हमाणे वा, अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ ।णिग्गंथे णिग्गंथिं दुग्गसि वा विसमंसि वा पक्खलमाणिं वा पवडमाणिं वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ ।णिग्गंथे णिग्गंथि सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कसमाणिं वा उवुझमाणिं वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णाइक्कमइ ।णिग्गंथे णिग्गंथिं णावं आरुहमाणे वा ओसहमाणे वा णाइक्कमइ। खित्तइत्तं, दित्तइत्तं, जक्खाइटुं, उम्मायपत्तं, उवसग्गपत्तं साहिगरणं सपायच्छित्तं जाव भत्तपाणपडियाइक्खियं अट्ठजायं वा णिग्गंथे णिग्गंथिं गिण्हमाणे वा अवलंबसाणे वाणाइक्कमइ॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - विबुझेजा - जागृत होता है, भोयणपरिणामेणं - भोजन परिणाम से, णिहक्खएणं - निद्रा पूरी होने से, सुविणदंसणेणं - स्वप्न देखने से, गिण्हमाणे - पकड़ता हुआ, अवलंबमाणे - सहारा देता हुआ, पसुजाइए - पशु जातीय-पशु आदि, पक्खीजाइए - पक्षी जातीयपक्षी गीध आदि, ओहाएजा - मारे, दुग्गंसि - दुर्गम स्थान में, विसमंसि - विषम स्थान में, पक्खलमाणिं - स्खलित होती हुई, पवडमाणिं - गिरती हुई, सेयंसि - गीले स्थान में, पंकसि - कीचड़ में, पणगंसि - पनक-लीलण फूलण पर, उक्कसमाणिं- फिसलती हुई, उबुझमाणिं - बहती हुई, आरुहमाणे - चढाता हुआ, ओरुहमाणे - उतारता हुआ, उवसग्गपतं - उपसर्ग को प्राप्त, साहिगरणं - साधिकरण-कषाय युक्त, भत्तपाणपडियाइक्खियं - आहार पानी का त्याग की हुई, अट्ठजायं - अर्थजात-प्रयोजन युक्त अथवा संयम से विचलित होती हुई। ..
भावार्थ - पांच कारणों से सोता हुआ प्राणी जागृत होता है । यथा - शब्द सुनने से, स्पर्श लगने से, भोजन परिणाम से यानी भूख लगने से, निद्रा पूरी होने से और स्वप्न देखने से ।
पांच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ साध्वी को पकड़ता हुआ अथवा सहारा देता हुआ भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । यथा - कोई पशु मदोन्मत्त बैल आदि अथवा पक्षी- गीध आदि साध्वी को मारे तो उस समय उसकी रक्षा के लिए उसे पकड़ता हुआ अथवा सहारा देता हुआ साधु भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । दुर्गम स्थान में अथवा विषम स्थान में स्खलित होती हुई अथवा गिरती हुई साध्वी को पकड़ता हुआ अथवा सहारा देता हुआ साधु भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । गीली जगह में, कीचड़ में, अथवा लीलण फूलण पर फिसलती हुई अथवा जल में बहती हुई साध्वी को पकड़ता हुआ अथवा सहारा देता हुआ साधु भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । साध्वी को नाव में चढ़ाता हुआ अथवा नाव से उतारता हुआ साधु भगवान् की' आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । विक्षिप्त चित्त वाली, हर्षोन्मत्त चित्त वाली, यक्षाविष्ट, उन्माद को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org