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हैं। यह क्रम भी छह मास तक पूर्ववत् चलता है। इस प्रकार आठ साधुओं के तप कर लेने पर उनमें से एक गुरु पद पर स्थापित किया जाता है और शेष सात वैयावृत्य करते हैं और गुरु पद पर रहा हुआ साधु तप करना शुरू करता है। यह भी छह मास तक तप करता है। इस प्रकार अठारह मास में यह परिहार तप का कल्प पूर्ण होता है। परिहार तप पूर्ण होने पर वे साधु या तो इसी कल्प को पुनः प्रारम्भ करते हैं या जिन कल्प धारण कर लेते हैं या वापिस गच्छ आ जाते हैं। यह संयम छेदोपस्थापनिक चारित्र वालों के ही होता है दूसरों के नहीं।
निर्विशमानक और निर्विष्टकायिक के भेद से परिहार विशुद्धि संयम दो प्रकार का है।
तप करने वाले पारिहारिक सांधु निर्विशमानक कहलाते हैं। उनका चारित्र निर्विशमानक परिहार विशुद्धि चारित्र कहलाता है।
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तप करके वैयावृत्य करने वाले अनुपारिहारिक साधु तथा तप करने के बाद गुरु पद पर रहा हुआ साधु निर्विष्टकायिक कहलाता है। इनका चारित्र निर्विष्टकायिक परिहार विशुद्धि चारित्र कहलाता है।
श्री स्थानांग सूत्र
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४. सूक्ष्म सम्पराय संयम - सम्पराय का अर्थ कषाय होता है। जिस चारित्र में सूक्ष्म सम्पराय अर्थात् संज्वलन लोभ का सूक्ष्म अंश रहता है। उसे सूक्ष्म सम्पराय संयम कहते हैं।
विशुद्धयमान और संक्लिश्यमान के भेद से सूक्ष्म सम्पराय संयम के दो भेद हैं।
क्षपक श्रेणी एवं उपशम श्रेणी पर चढ़ने वाले साधु के परिणाम उत्तरोत्तर शुद्ध रहने से उनका सूक्ष्म सम्पराय चारित्र विशुद्धयमान कहलाता है।
उपशम श्रेणी से गिरते हुए साधु के परिणाम संक्लेश युक्त होते हैं इसलिये उनका सूक्ष्मसम्पराय चारित्र संक्लिश्यमान कहलाता है।
५. यथाख्यात चारित्र संयम सर्वथा कषाय का उदय न होने से अतिचार रहित पारमार्थिक रूप से प्रसिद्ध चारित्र यथाख्यात चारित्र संयम कहलाता है । अथवा अकषायी साधु का निरतिचार यथार्थ चारित्र यथाख्यात चारित्र कहलाता है ।
छद्मस्थ और केवली के भेद से यथाख्यात चारित्र के दो भेद हैं। अथवा उपशान्त मोह और क्षीण मोह या प्रतिपाती और अप्रतिपाती के भेद से इसके दो भेद हैं।
सयोगी केवली और अयोगी केवली के भेद से केवली यथाख्यात चारित्र के दो भेद हैं।
एकेन्द्रिय जीवों का समारम्भ न करने वाले के पांच प्रकार का संयम होता है - १. पृथ्वीकाय संयम २. अप्काय संयम ३. तेजस्काय संयम ४. वायुकाय संयम ५. वनस्पतिकाय संयम ।
असंयम पाप से निवृत्त न होना असंयम कहलाता है अथवा सावध अनुष्ठान सेवन करना असंयम है। एकेन्द्रिय जीवों का समारम्भ करने वाले के पांच प्रकार का असंयम होता है - १. पृथ्वीकाय असंयम २. अप्काय असंयम ३. तेजस्काय असंयम ४. वायुकाय असंयम ५. वनस्पतिकाय असंयम ।
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