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- स्थान ५ उद्देशक २
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पंचेन्द्रिय जीवों का समारम्भ न करने वाला पांच इन्द्रियों का व्याघात नहीं करता। इसलिए उसका पांच प्रकार का संयम होता है - १. श्रोत्रेन्द्रिय संयम २. चक्षुरिन्द्रिय संयम ३. घाणेन्द्रिय संयम ४. रसनेन्द्रिय संयम ५. स्पर्शनेन्द्रिय संयम। इससे विपरीत पञ्चेन्द्रिय जीवों का समारम्भ करने वाला पांच इन्द्रियों का व्याघात करता है इसलिये उसे पांच प्रकार का असंयम होता है - श्रोत्रेन्द्रिय असंयम यावत् स्पर्शनेन्द्रिय असंयम।
सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्व का समारम्भ न करने वाले के पांच प्रकार का संयम होता है - १. एकेन्द्रिय संयम २. द्वीन्द्रिय संयम ३. त्रीन्द्रिय संयम ४. चतुरिन्द्रिय संयम ५. पंचेन्द्रिय संयम। इससे विपरीत सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ करने वाले के पांच प्रकार का असंयम होता है। एकेन्द्रिय असंयम यावत् पंचेन्द्रिय असंयम।
तृण वनस्पतिकाय पांच प्रकार की कही गयी है - १. अग्र बीज - जिसका बीज अग्रभाग पर होता है २. मूल बीज- जिसका बीज मूल भाग में होता है ३. पर्व बीज - जिसका बीज पर्व (गांठ) में होता है ४. स्कन्ध बीज - जिसका बीज स्कन्ध में होता है ५. बीज रुह - बीज से उत्पन्न होने वाली वनस्पति।
आचार, आचारप्रकल्प, आरोपणा. पंचविहे आयारे पण्णत्ते तंजहा - णाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वीरियायारे । पंचविहे आयारपकप्पे पण्णत्ते तंजहा - मासिए उग्याइए, मासिए अणुग्याइए, चउमासिए उग्याइए, चउमासिए अणुग्धाइए, आरोवणा । आरोवणा पंचविहा पण्णत्ता तंजहा - पट्टविया, ठविया, कसिणा, अकसिणा, हाडहडा॥२४॥
कठिन शब्दार्थ- आयारे - आचार, आयारपकप्पे - आचार प्रकल्प, मासिए - मासिक, उग्याइए - उद्घातिक, अणुग्घाइए - अनुद्घातिक, चउमासिए - चातुर्मासिक, आरोवणा - आरोपणा, पट्टविया - प्रस्थापिता, उविया - स्थापिता, कसिणा - कृत्स्ना, अकसिणा - अकृत्स्ना ।।
भावार्थ - पांच प्रकार का आचार कहा गया है । यथा - ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तप आचार और वीर्याचार । पांच प्रकार का आचार प्रकल्प कहा गया है । यथा - मासिक उद्घातिक यानी लघुमासिक, मासिक अनुद्घातिक यानी गुरुमासिक, चातुर्मास उद्घातिक यानी लघु चतुर्मासिक, चातुर्मास अनुद्घातिक यानी गुरुचतुर्मासिक और आरोपणा । पांच प्रकार की आरोपणा कही गई है । यथा - प्रस्थापिता, स्थापिता, कृत्स्ना, अकृत्वा और हाडहडा । ।
. विवेचन - आचार - मोक्ष के लिए किया जाना वाला ज्ञानादि आसेवन रूप अनुष्ठान विशेष आचार कहलाता है। अथवा - गुण वृद्धि के लिए किया जाने वाला आचरण आचार कहलाता है।
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