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पृष्ठ ३४-३५ ३४-३५ ३६-३८
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विष या नु क्र मणि का पाँचवां स्थान : प्रथम उद्देशक ।
| विषय विषय
पृष्ठ हेतु और अहेतु महाव्रत, अणुव्रत
१-४| केवली के पांच अनुत्तर वर्ण, रस, काम गुण
४-६|पंच कल्याणक पांच प्रतिमा, स्थावरकाय
६-१० | द्वितीय उद्देशक अवधिदर्शन, केवलज्ञान दर्शन
६-१० अपवाद मार्ग कथन शरीर वर्णन
१०-१२ (1) नदी उतरने के पांच कारण तीर्थ भेद
१३ | (2) चातुर्मास के पूर्व काल में विहार उपदिष्ट एवं अनुमत पांच बोल १४-२० (3) वर्षावास में विहार महानिर्जरा, महापर्यवसान' २०-२१ पांच अनुद्घातिक विसंभोगी करने के बोल
२१-२३ अन्तःपुरं प्रवेश के कारण पारञ्चित प्रायश्चित्त
२१=२३ गर्भधारण के कारण पांच विग्रह और अविग्रह के स्थान २३-२५ एकत्रवास, शय्या, निषद्या निषद्या पांच
२५ पांच आस्रव आर्जव स्थान
२५ पांच संवर पांच ज्योतिषी देव
२५-२९ दण्ड पांच पांच प्रकार के देव, परिचारणा २५-२९ पांच क्रियाएँ अग्रमहिषियों
२५-२९ परिज्ञा अनीक और अनीकाधिपति २५-२९ व्यवहार देव स्थिति
२५-२९ जागृत-सुप्त पांच प्रतिघात
३०-३१ कर्म बंध एवं निर्जरा आजीविक के पांच भेद
३०-३१ पांच दत्तियाँ राज चिह्न
.३०-३१ उपघात एवं विशुद्धि उदीर्ण परीषहोपसर्ग
३१-३४ | दुर्लभबोधि-सुलभबोधि (1) छद्मस्थ के परीषह सहने के स्थान प्रतिसंलीन-अप्रतिसंलीन (2) केवली के परीषह सहने के स्थान |संवर-असंवर
४२-४४ ४४-४६ ४६-५३ ४६-५३
४६-५३ ५४-५६ . ५४-५६ ५७-५८ ५७-५८ ५७-५८ ५७-५८ ५८-५९ ६०-६५ ६०-६५
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