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________________ 16] आगम सम्पादन में हमारा विशेष अनुभव न होने से भूलों का रहना स्वाभाविक है। अतएव तत्त्वज्ञ मनीषियों से निवेदन है कि इस प्रकाशन में कोई भी त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो हमें सूचित कर अनुग्रहित करावें। संघ का आगम प्रकाशन का काम प्रगति पर है। इस आगम प्रकाशन के कार्य में धर्म प्राण समाज रल तत्वज्ञ सुश्रावक श्री जशवंतलाल भाई शाह एवं श्राविका रत्न श्रीमती मंगला बहन शाह,ब म्बई की गहन रुचि है। आपकी भावना है कि संघ द्वारा जितने भी आगम प्रकाशन हो वे अर्द्ध मूल्य में ही बिक्री के लिए पाठकों को उपलब्ध हो। इसके लिए उन्होंने सम्पूर्ण आर्थिक सहयोग प्रदान करने की आज्ञा प्रदान की है। तदनुसार प्रस्तुत आगम पाठकों को उपलब्ध कराया जा रहा है, संघ एवं पाठक वर्ग आपके इस सहयोग के लिए आभारी है।। आदरणीय शाह साहब तत्त्वज्ञ एवं आगमों के अच्छे ज्ञाता हैं। आप का अधिकांश समय धर्म साधना आराधना में बीतता है। प्रसन्नता एवं गर्व तो इस बात का है कि आप स्वयं तो आगमों का पठन-पाठन करते ही हैं, पर आपके सम्पर्क में आने वाले चतुर्विध संघ के सदस्यों को भी आगम की वाचनादि देकर जिनशासन की खूब प्रभावना करते हैं। आज के इस हीयमान युग में आप जैसे तत्त्वज्ञ श्रावक रत्न का मिलना जिनशासन के लिए गौरव की बात है। आपकी धर्म सहायिका श्रीमती मंगलाबहन शाह एवं पुत्र रत्न मयंकभाई एवं श्रेयांसभाई शाह भी आपके पद चिन्हों पर चलने वाले हैं। आप सभी को आगमों एवं थोकड़ों का गहन अभ्यास है। आपके धार्मिक जीवन को देख कर प्रमोद होता है। आप चिरायु हो एवं शासन की प्रभावना करते रहे। . ___ प्रस्तुत स्थानाङ्ग सूत्र दो भागों में प्रकाशित हुआ है। दूसरे भाग में शेष पाँचवें बोल से दसवें बोल तक की सामग्री का संकलन किया गया है। स्थानांग सूत्र के दोनों भागों की प्रथम आवृत्ति मार्च २०००, द्वितीय आवृत्ति अगस्त २००१ एवं तृतीय आवृत्ति २००६ में प्रकाशित हुई। अब यह चतुर्थ संशोधित आवृत्ति भी श्रीमान् जशवंतलाल भाई शाह, मुम्बई निवासी के अर्थ सहयोग से ही पाठकों की सेवा में प्रस्तुत की जा रही है। ___कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्यों में वृद्धि के साथ इस आवृत्ति में जो कागज काम में लिया गया है वह काफी अच्छी किस्म का है। इसके बावजूद भी इसके मूल्य में वृद्धि नहीं की गई है। फिर भी पुस्तक के ३८४ पेज की सामग्री को देखते हुए लागत से इसका मूल्य अर्द्ध ही रखा गया है। पाठक बंधु इसका अधिक से अधिक लाभ उठावें। इसी शुभ भावना के साथ! ब्यावर (राज.) . संघ सेवक . दिनांक: २५-४-२००८ नेमीचन्द बांठिया 'अ: भा. सुधर्म जैन संस्कृति रक्षक संघ, ब्यावर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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