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__ स्थान.५ उद्देशक २ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 मिच्छादसणवत्तिया एवं सव्वेसिं णिरंतरं जाव मिच्छदिट्ठियाणं वेमाणियाणं, णवरं विगलिंदिया मिच्छदिढि ण भण्णंति, सेसं तहेव । पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - काइया, अहिगरणिया, पाउसिया,पारितावणिया, पाणाइवाय किरिया । णेरइयाणं पंच एवं चेव णिरंतरं जाव वेमाणियाणं । पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा -
आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया।णेरइयाणं पंच किरिया, णिरंतरं जाव वेमाणियाणं। पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - दिट्ठिया, पुट्ठिया, पाडुच्चिया, सांतोवणिवाइया, साहत्थिया । एवं रइयाणं जाव वेमाणियाणं । पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - णेसत्थिया, आणवणिया, वेयारणिया, अणाभोगवत्तिया, अणवकंखवत्तिया, एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। पंच किरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - पेज्जवत्तिया, दोसवत्तिया, पओगकिरिया, समुदाणकिरिया, ईरियावहिया । एवं मणुस्साण वि सेसाणं णत्थि॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - आसवदारा - आस्रवद्वार, मिच्छत्तं - मिथ्यात्व, अविरई - अविरति, पमाए - प्रमाद, कसाया - कषाय, जोगा - योग, संवरदारा - संवर द्वार, सम्मत्तं - सम्यक्त्व, विरई - विरति, अपमाओ - अप्रमाद, अकसाइत्तं - अकषायीपना, अयोगित्तं - अयोगीपना, अट्ठादंडे - अर्थदण्ड, अणट्ठादंडे - अनर्थदण्ड, हिंसादण्डे - हिंसा दण्ड, अकम्हादंडे - अकस्मात् दंड, दिद्विविप्परियासियादडे - दृष्टि विपर्यास दंड, किरियाओ.--क्रियाएं, आरंभिया - आरम्भिकी, परिग्गहिया - पारिग्रहिकी, मायावत्तिया - मायाप्रत्ययिकी, अपच्चक्खाणकिरिया - अप्रत्याख्यानिकी क्रिया, मिच्छादसणवत्तिया - मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी, काइया - कायिकी, अहिगरणिया - आधिकरणिकी, पाउसिया - प्राद्वेषिकी, पारितावणिया - पारितापनिकी, पाणाइवाय किरिया - प्राणातिपातिकी क्रिया, दिट्ठिया - दृष्टिजा, पुट्ठिया - पृष्टजा, पाडुच्चिया - प्रातीत्यिकी, सामंतोवणिवाइया - सामंतोपनिपातिकी, साहत्थिया - स्वहस्तिकी, णेसत्थिया - नैसृष्टिकी, आणवत्तिया - आज्ञापनिकी, वेयारणिया - वैदारणिकी, अणाभोगवत्तिया - अनाभोग प्रत्यया, अणवकंखवत्तिया - अनवकांक्षा प्रत्यया, पेजवत्तिया - राग प्रत्यया, दोसवत्तिया- द्वेष प्रत्यया, पओगकिरिया - प्रयोग क्रिया, समुदाणकिरियासामुदानिकी क्रिया, इरियावहिया - ईर्यापथिकी।
भावार्थ - पांच आस्रवद्वार कहे गये हैं यथा - मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग । पांच संवरद्वार कहे गये हैं यथा - सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषायीपना और अयोगीपना । पांच दण्ड कहे गये हैं यथा - अर्थदण्ड, अनर्थदण्ड, हिंसादण्ड, अकस्माद्दण्ड, दृष्टिविपर्यास दण्ड ।
पांच क्रियाएं कही गई है यथा - आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी, अप्रत्याख्यानिकी
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