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________________ स्थान ५ उद्देशक २ . 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णाइक्कमइ तंजहा - खित्तचित्ते समणे णिग्गंथे णिग्गंथेहिं अविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णाइक्कमइ । एवमेएणं गमएणं दित्तचित्ते, जक्खाइटे, उम्मायपत्ते, णिग्गंथी पव्वावियए समणे णिग्गंथेहिं अविज्जमाणेहिं अचेलए सचेलियाहिं णिग्गंथीहिं सद्धिं संवसमाणे णाइक्कमइ॥१८॥ कठिन शब्दार्थ - णिसीहियं - स्वाध्याय, अगामियं - गांव रहित, छिण्णावायं - छिन्नापातमुसाफिरों के आगमन से रहित, दीहमद्धं - लम्बे मार्ग वाले, अडविं - अटवी-जंगल में, उवस्सयं - उपाश्रय, आमोसगा - चोर, चीवरपडियाए - वस्त्र चुराने के अभिप्राय से, सचेलियाहिं - वस्त्र सहित। भावार्थ - साधु और साध्वी पांच कारणों से एक जगह निवास अथवा कायोत्सर्ग, शय्या तथा स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं यथा - कोई साधु और साध्वी एक महान् आसपास गांव रहित, मुसाफिरों के आगमन से रहित लम्बे मार्ग वाले जंगल में चले गये हों वहाँ एक जगह निवास अथवा कायोत्सर्ग, शय्या तथा स्वाध्याय करते हुए साधु साध्वी भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । कोई साधु और साध्वी किसी गांव अथवा नगर अथवा राजधानी में निवासार्थ आये हों, उनमें से किन्हीं को वहाँ उपाश्रय यानी ठहरने के लिए स्थान मिल जाय और किन्हीं को स्थान न मिले तो वैसी परिस्थिति में एक ही जगह निवास अथवा कायोत्सर्ग शय्या और स्वाध्याय करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । कोई साधु और साध्वी नागकुमार देव के मन्दिर में अथवा सुपर्णकुमार देव के मन्दिर में निवासार्थ आये हों वहाँ एक ही जगह कायोत्सर्ग आदि करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । कोई चोर दिखाई दे और वे वस्त्र चुरा लेने के अभिप्राय से साध्वियों को पकड़ना चाहते हों तो उनकी रक्षा करने के लिए एक ही जगह कायोत्सर्ग आदि करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । कोई जवान आदमी दिखाई दे और वे मैथुन सेवन करने के अभिप्राय से साध्वियों को पकड़ना चाहे तो वहाँ उनके शील की रक्षा के लिए एक ही जगह कायोत्सर्ग आदि करते हुए भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं । . पांच कारणों से वस्त्र रहित श्रमण निर्ग्रन्थ वस्त्र सहित साध्वियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते हैं यथा - कोई श्रमण निर्ग्रन्थ शोक से पागल चित्त वाला होकर नग्न हो गया हों और उसकी रक्षा करने वाले दूसरे साधु वहां मौजूद न हों तो साध्वियां उस पागल नग्न साधु की पुत्रवत् रक्षा करे । इस प्रकार वह वस्त्र रहित पागल चित्त वाला साधं उन वस्त्रसहित साध्वियों के साथ रहता हुआ भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । इसी तरह दृप्तचित्त वाला यानी अधिक हर्ष के कारण पागल चित्त वाला, यक्षाविष्ट यानी भूतादि के कारण पागल चित्त वाला, उन्माद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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