SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ श्री स्थानांग सूत्र ************************00000 यानी जो जन्म से ही बांझ हो, रोग से पीडित हो, शोक आदि मानसिक चिन्ता से युक्त हो, इन पांच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ रहती हुई भी गर्भ धारण नहीं कर सकती है । पांच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ रहती हुई भी यानी संगम करने पर भी गर्भ धारण नहीं कर सकती है यथा - नित्यऋतुका यानी सदा ऋतुसम्बन्धी रक्त बहता हो, अनृतुका यानी जिस स्त्री का ऋतुस्राव बन्द हो गया हो, व्यापन्न स्रोता यानी रोगादि के कारण जिसका गर्भाशय नष्ट हो गया हो, व्याविद्धस्रोता यानी जिसका गर्भाशय वात आदि के कारण शक्तिरहित हो और अनंगक्रीड़ा करने वाली अथवा बहुत अधिक कामसेवन करने वाली, वेश्या आदि, इन पांच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ रहती हुई भी गर्भ धारण नहीं कर सकती है। पांच कारणों से स्त्री गर्भ धारण नहीं कर सकती है यथा' - ऋतुकाल में यथेच्छ कामसेवन नहीं करे, अथवा उसकी योनि में आये हुए भी वीर्य के पुद्गल योनि दोष से वापिस योनि से बाहर निकल जावे, अथवा उसकी योनि का रक्त अत्यन्त पित्तों से युक्त होने से. निर्बीज हो गया हो, अथवा गर्भधारण करने से पहले देवशक्ति के द्वारा गर्भधारण की शक्ति नष्ट कर दी. गई हो अथवा पूर्व जन्म में पुत्रप्राप्ति रूप कर्म उपार्जन न किये हों । इन पांच कारणों से स्त्री पुरुष साथ रहती हुई भी यानी संगम करने पर भी गर्भ धारण नहीं कर सकती है । के विवेचन - इस काल में १२ वर्ष तक की कन्या अप्राप्तयौवना कहलाती है और ५० अथवा ५५ वर्ष की स्त्री अतिक्रान्त यौवना कहलाती है । एकत्र स्थान, शय्या निषद्या के पांच बोल पंचहि ठाणेहिं णिग्गथा णिग्गंथीओ य एगयओ ठाणं वा सिज्जं वा णिसीहियं वा चेएमाणे णाइक्कमंति तंज़हा अत्थेगइया णिग्गथा णिग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छण्णावायं दीहमद्धं अडविं अणुपविट्ठा तत्थ एगयओ ठाणं वा सिज्जं वा णिसीहियं वा एमाणे णाइक्कमंति, अत्थेगइया णिग्गंथा णिग्गंथीओ य गामंसि वा णयरंसि वा जाव रायहाणिंसि वा वासं उवागया एगइया तत्थ उवस्सयं लभंति एगइया or भंति तत्थ एगइओ ठाणं वा जाव णाइक्कमंति । अत्थेगइया णिग्गंथा णिग्गंथीओ य णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवागया तत्थ एगइओ जाव इक्कiति । आमोसगा दीसंति ते इच्छंति णिग्गंथीओ चीवरपडियाए पडिगाहित्तए तत्थ एगयओ ठाणं वा जाव णाइक्कमंति । जुवाणा दीसंति ते इच्छंति णिग्गंथीओ मेहुणपडियाए पडिगाहित्तए तत्थ एगयओ ठाणं वा जाव णाइक्कमंति । इच्चेएहिं पंच ठाणेहिं जाव णाइक्कमति । Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy