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श्री स्थानांग सूत्र
पीढानीक का अधिपति अश्वराज महासोदाम, हस्ती सेना का अधिपति हस्तीराज माल्यंकर, महिष सेना का अधिपति महालोहिताक्ष, रथसेना का अधिपति किंपुरुष । नागकुमारों के इन्द्र नागकुमारों के राजा धरणेन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं यथा - पदाति सेना यावत् रथसेना । पांच अधिपति-पदाति सेना का अधिपति भद्रसेन, पीढानीक का अधिपति अश्वराज यशोधर, हस्तीसेना का अधिपति हस्तीराज सुदर्शन, महिष सेना का अधिपति नीलकण्ठ, रथसेना का अधिपति आनन्द है । नागकुमारों के इन्द्र नागकुमारों के राजा भूतानन्द के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं यथा - पदाति सेना यावत् रथसेना। पांच अधिपति - पदाति सेना का अधिपति दक्ष, पीढानीक का अधिपति अश्वराज सुग्रीव, हस्ती सेना का अधिपति हस्तिराज सुविक्रम, महिष सेना का अधिपति श्वेतकण्ठ, रथ सेना का अधिपति नन्दोत्तर है। सुवर्णेन्द्र सुवर्णकुमारों के राजा वेणुदेव के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं यथा - पदाति सेना यावत् रथसेना। जैसे धरणेन्द्र की सेना के पांच अधिपति कहे गये हैं वैसे ही वेणुदेव के भी कह देने चाहिए। जैसे भूतानन्द की पांच संग्रामिक सेना और उसके पांच अधिपति कहे गये हैं वैसे ही वेणुदाल के भी जानना चाहिए। जैसे धरणेन्द्र की पांच संग्रामिक सेना और उसके अधिपति कहे गये हैं वैसे ही घोष तक दक्षिण दिशा के सब इन्द्रों के कह देने चाहिए। जैसे भूतानन्द की पांच संग्रामिक सेना . और उसके अधिपति कहे गये हैं वैसे ही महाघोष तक उत्तर दिशा के सब इन्द्रों के कह देने चाहिए ।
देवों के इन्द्र देवों के राजा शक्रेन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं. यथा - पदाति सेना, पीढानीक, हस्तिसेना, वृषभानीक यानी बैलों की सेना और रथ सेना । पांच अधिपति - पैदल सेना का अधिपति हरिणेगमेषी है, पीढानीक का अधिपति अश्वराज वायु है । हस्ति सेना का अधिपति हस्तिराज ऐरावत है । वृषभ सेना का अधिपति दामार्थी है और रथ सेना का अधिपति माढर है, । देवों के इन्द्र देवों के राजा ईशानेन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और पांच संग्रामिक सेना के अधिपति कहे गये हैं यथा - पदाति सेना, पीढानीक, हस्तिसेना, वृषभसेना और रथसेना । पांच अधिपति - पैदल सेना का अधिपति लघुपराक्रम है । पीढानीक का अधिपति अश्वराज महावायु है । हस्तिसेना का अधिपति हस्तिराज पुष्पदंत है । वृषभसेना का अधिपति महादामर्द्धि है और रथसेना का अधिपति महामाढर है । जैसे शक्रेन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और उसके अधिपति कहे गये हैं वैसे ही आरण देवलोक तक सब विषम संख्या वाले देवलोकों के यानी तीसरे, पांचवें, सातवें, नववें और ग्यारहवें देवलोक के इन्द्रों के भी पांच संग्रामिक सेना और उसके अधिपति कह देने चाहिए । जैसे ईशानेन्द्र के पांच संग्रामिक सेना और उसके अधिपति कहे गये हैं वैसे ही अच्युत देवलोक तक संब सम संख्या वाले देवलोकों के यानी चौथे, छठे, आठवें, दसवें और बारहवें देवलोक के इन्द्रों के भी पांच संग्रामिक सेना और उसके अधिपति कह देने चाहिए।
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