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________________ स्थान ५ उद्देशक १ देवों के इन्द्र देवों के राजा शक्रेन्द्र की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की पांच पल्योपम की स्थिति कही गई है । देवों के इन्द्र देवों के राजा ईशानेन्द्र की आभ्यन्तर परिषदा की देवियों की पांच पल्योपम की स्थिति कही गई है। विवेचन - ज्योतिषी देव के पांच भेद - १. चन्द्र २. सूर्य ३. ग्रह ४. नक्षत्र ५. तारा। मनुष्य क्षेत्रवर्ती अर्थात् मानुष्योत्तर पर्वत पर्यन्त अढ़ाई द्वीप में रहे हुए ज्योतिषी देव सदा मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए चलते रहते हैं। इन्हें चर कहते हैं। मानुष्योत्तर पर्वत के आगे रहने वाले सभी ज्योतिषी देव स्थिर रहते हैं। इन्हें अचर कहते हैं। ____ जम्बूद्वीप में दो चन्द्र, दो सूर्य, छप्पन नक्षत्र, एक सौ छिहत्तर ग्रह और एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोडाकोड़ी तारे हैं। लवणोदधि समुद्र में चार, धातकी खण्ड में बारह, कालोदधि में बयालीस और अर्द्धपुष्कर द्वीप में बहत्तर चन्द्र हैं। इन क्षेत्रों में सूर्य की संख्या भी चन्द्र के समान ही है। इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में १३२ चन्द्र और १३२ सूर्य हैं। ___एक चन्द्र का परिवार २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह और ६६९७५ कोड़ाकोड़ी तारे हैं। इस प्रकार अढ़ाई द्वीप में इनसे १३२ गुणे ग्रह नक्षत्र और तारे हैं। ____ चन्द्र से सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्र से तारे शीघ्र गति वाले हैं। मध्यलोक में मेरु पर्वत के सम भूमिभाग से ७९० योजन से ९०० योजन तक यानी ११० योजन में ज्योतिषी देवों के विमान हैं। देवों की पाँच परिचारणा - वेद जनित बाधा होने पर उसे शान्त करना परिचारणा कहलाती है। परिचारणा के पांच भेद हैं - १. काय परिचारणा २. स्पर्श परिचारणा ३. रूप परिचारणा ४: शब्द परिचारणा ५. मन परिचारणा। . भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और सौधर्म, ईशान देवलोक के देवता काय परिचारणा वाले हैं अर्थात् शरीर द्वारा स्त्री पुरुषों की तरह मैथुन सेवन करते हैं और इससे वेद जनित बाधा को शान्त करते हैं। तीसरे सनत्कुमार और चौथे माहेन्द्र देवलोक के देवता स्पर्श परिचारणा वाले हैं अर्थात् देवियों के अङ्गोपाङ्ग का स्पर्श करने से ही उनकी वेद जनित बाधा शान्त हो जाती है। पांचवें ब्रह्मलोक और छठे लान्तक देवलोक में देवता रूप परिचारणा वाले हैं। वे देवियों के सिर्फ रूप को देख कर ही तृप्त हो जाते हैं। सातवें महाशुक्र और आठवें सहस्रार देवलोक में देवता शब्द परिचारणा वाले हैं। वे देवियों के आभूषण आदि की ध्वनि को सुन कर ही वेद जनित बाधा से निवृत्त हो जाते हैं। शेष चार आणत, प्राणत, आरण और अच्युत देवलोक के देवता मन परिचारणा वाले होते हैं अर्थात् संकल्प मात्र से ही वे तृप्त हो जाते हैं। । प्रैवेयक और अनुत्तर विमानवासी देवता परिचारणा रहित होते हैं। उन्हें मोह का उदय कम रहता है। इसलिये वे प्रशम सुख में ही तल्लीन रहते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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